2. अत्यंत प्राचीन युग के ईरानियों और वैदिक आर्यों की प्रार्थना, उपासना और कर्मकांड में कोई भेद नजर नहीं आता। 'जेंद अवेस्ता' में भी वेद के समान गाथा (गाथ) और मंत्र (मन्थ्र) हैं। इसके कई विभाग हैं जिसमें गाथ सबसे प्राचीन और जरथुस्त्र के मुंह से निकला हुआ माना जाता है। एक भाग का नाम 'यश्न' है, जो वैदिक 'यज्ञ' शब्द का रूपांतर मात्र है। जरथुस्त्र पारसी धर्म के संस्थापक थे। इतिहासकारों का मत है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ईपू के बीच हुए थे। यह लगभग वही काल था, जबकि राजा सुदास का आर्यावर्त में शासन था और दूसरी ओर हजरत इब्राहीम अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। प्राचीन पारसी धर्म ईरान का राजधर्म था। इसके धर्मावलंबियों को पारसी या जोराबियन कहा जाता है। जरथुस्त्र ईरानी आर्यों के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरुषहस्प के पुत्र थे। उनकी माता का नाम दुधधोवा (दोग्दों) था, जो कुंवारी थी। 30 वर्ष की आयु में जरथुस्त्र को ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी मृत्यु 77 वर्ष 11 दिन की आयु में हुई।
ALSO READ: पाकिस्तान देगा ईरान को शाहीन-3 मिसाइलें