यहां नाथ संप्रदाय के गिरि उपाधि धारी लोग रहते हैं। मंदिर की मुख्य विशेषता इसका किसी विशेष वंश, कुल, परंपरा तथा संप्रदाय संकीर्णता से मुक्त रहना है। पहले पुरोहित के रूप में स्व. पंचानन मिश्र का नाम आता है, जिन्हें राजा ने नियुक्त किया था। मां उग्रतारा नगर मंदिर में राज दरबार की व्यवस्था आज भी कायम है। यहां पुजारी के रूप में मिश्रा और पाठक परिवार के अलावा बकरे की बलि देने के लिए पुरुषोत्तम पाहन, नगाड़ा बजाने के लिए घांसी, काड़ा की बलि देने के लिए पुजारी नियुक्त होते हैं।
रहस्यमों से भरा क्षेत्र
मां भगवती उभ्रतादारा के दक्षिणी और पश्चिमी कोने पर स्थित चुटुबाग नामक पर्वत पर मां भ्रामरी देवी की गुफाएं हैं, जहां कई स्थानों पर बूंद-बूंद पानी टपकता रहता है। कहते हैं कि यहां करीब सत्तर फीट नीचे सतयुगी केले का वृक्ष है, जो वर्षों पुराना होने के बावजूद आज भी हराभरा है। इसमें फल भी लगता है।
बालूमाथ से 25 किलोमीटर दूर प्रखंड के श्रीसमाद गांव के पास तितिया या तिसिया पहाड़ के पास पुरातत्व विभाग को चतुर्भुजी देवी की एक मूर्ति मिली है, जिसके पीछे अंकित लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। यह लिपि न तो ब्राह्मी है और न ही देवनागरी या भारत की अन्य कोई लिपि।