हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू धर्म मानता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है। भारत में संगीत की परंपरा अनादिकाल से ही रही है। सामवेद उन वैदिक ऋचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है। इसी के आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया। दुनियाभर के संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं।
1. हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है।
2. विष्णु के पास शंख है तो शिव के पास डमरू, नारद मुनि और सरस्वती के पास वीणा है, तो भगवान श्रीकृष्ण के पास बांसुरी।
3. देवर्षि नारद के हाथों में एकतारा हमेशा रहता है।
4. खजुराहो के मंदिर हो या कोणार्क के मंदिर, प्राचीन मंदिरों की दीवारों में गंधर्वों की मूर्तियां आवेष्टित हैं।
5. उन मूर्तियों में लगभग सभी तरह के वाद्य यंत्र को दर्शाया गया है।
6. गंधर्वों और किन्नरों को संगीत का अच्छा जानकार माना जाता है।
गणेशजी का वाद्ययंत्र ढोल :
1. गणेशजी को मूर्ति और उनके चित्रों में वीणा, सितार और ढोल बाजाते हुए दर्शाया जाता है।
2. कहीं कहीं पर उन्हें बांसुरी बजाते हुए भी चित्रित किया गया है।
3. वैसे गणेशजी भी संगीत प्रेमी हैं। अक्सर तो उन्हें ढोल व मृदंग बजाते हुए ही चित्रित किया गया है।
4. ढोल सागर ग्रंथ के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने ढोल का निर्माण किया था। कहते हैं कि विष्णुजी ने तांबा धातु को गलाया और ब्रह्माजी ने उस ढोल में ब्रह्म कनौटी लगाई और ढोल के दोनों ओर सूर्य और चंद्रमा के रूप में खालें लगाई गईं।
5. जब ढोल बन गया तो भगवान शंकर ने खुश होकर नृत्य किया तब उनके पसीने से एक कन्या 'औजी' पैदा हुई जिन्हें इस ढोल को बजाने की जिम्मेदारी दी गई। कहते हैं कि औजी ने ही इस ढोल को उलट-पलट कर चार शब्द- वेद, बेताल, बाहु और बाईल का निर्माण किया था।