आर्यभट्ट कौन थे, जानिए संपूर्ण परिचय

भारत में खगोलशास्त्र के सूत्र हमें ऋग्वेद में देखने को मिलते हैं। वैदिककाल में भी कई खगोलशास्त्री हुए हैं जिनके ज्ञान को ही बाद के वैज्ञानिकों ने आगे बढ़ाया। आर्यभट्ट के अलावा, भास्कराचार्य (जन्म- 1114 ई., मृत्यु- 1179 ई.), बौद्धयन (800 ईसापूर्व), ब्रह्मगुप्त (ईस्वी सन् 598 में जन्म और 668 में मृत्यु) और भास्कराचार्य प्रथम (600–680 ईस्वीं) भी महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। आर्यभट्ट के नाम पर ही अंतरिक्ष में छोड़े गए एक भारतीय उपग्रह का नाम भी है। महान गणितज्ञ और खगोलविद आर्यभट्ट के बारे में जानिए सबकुछ।
 
 
।।उदयो यो लंकायां सोस्तमय: सवितुरेव सिद्धपुरे।
मध्याह्नो यवकोट्यां रोमकविषयेऽर्धरात्र: स्यात्‌॥ -आर्यभट्टीय गोलपाद-13
अर्थात जब लंका में सूर्योदय होता है, तब सिद्धपुर में सूर्यास्त हो जाता है। यवकोटि में मध्याह्न तथा रोमक प्रदेश में अर्धरात्रि होती है।
 
आर्यभट्ट का जन्म ईस्वी सन् 476 में कुसुमपुर (पटना) में हुआ था। यह सम्राट विक्रमादित्य द्वितीय के समय हुआ थे। इनके शिष्य प्रसिद्ध खगोलविद वराह मिहिर थे। आर्यभट्ट ने नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर मात्र 23 वर्ष की आयु में 'आर्यभट्टीय' नामक एक ग्रंथ लिखा था। उनके इस ग्रंथ की प्रसिद्ध और स्वीकृति के चलते राजा बुद्धगुप्त ने उनको नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया था। आर्यभट्ट के बाद लगभग 875 ईस्वी में आर्यभट द्वितीय हुए जिन्होंने ज्योतिष पर 'महासिद्धांत' नामक ग्रंथ लिखा था। आर्यभट्ट द्वितीय गणित और ज्योतिष दोनों विषयों के आचार्य थे। इन्हें 'लघु आर्यभट्ट' भी कहा जाता था।
 
सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने ही सैद्धांतिक रूप से यह सिद्ध किया था कि पृथ्वी गोल है और उसकी परिधि अनुमानत: 24,835 मील है और यह अपनी धुरी पर घूमती है जिसके कारण रात और दिन होते हैं। इसी तरह अन्य ग्रह भी अपनी धुरी पर घूमते हैं जिनके कारण सूर्य और चंद्रग्रहण होते हैं।
 
आर्यभट्ट के 'बॉलिस सिद्धांत' (सूर्य चंद्रमा ग्रहण के सिद्धांत), 'रोमक सिद्धांत' और 'सूर्य सिद्धांत' विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। आर्यभट्ट द्वारा निश्चित किया 'वर्षमान' 'टॉलमी' की तुलना में अधिक वैज्ञानिक है। आर्यभट्ट के प्रयासों द्वारा ही खगोल विज्ञान को गणित से अलग किया जा सका।
 
बीजगणित में भी सबसे पुराना ग्रंथ आर्यभट्ट का है। आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का विकास किया। उन्होंने सबसे पहले 'पाई' (p) की कीमत निश्चित की और उन्होंने ही सबसे पहले 'साइन' (SINE) के 'कोष्टक' दिए। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्धति का आविष्कार किया। 
 
बीजगणित में उन्होंने कई संशोधन, संवर्धन किए और गणित ज्योतिष का 'आर्य सिद्धांत' प्रचलित किया।वृद्धावस्था में आर्यभट्ट ने 'आर्यभट्ट सिद्धांत' नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में रेखागणित, वर्गमूल, घनमूल जैसी गणित की कई बातों के अलावा खगोल शास्त्र की गणनाएं और अंतरिक्ष से संबंधित बातों का भी समावेश है। आज भी 'हिन्दू पंचांग' तैयार करने में इस ग्रंथ की मदद ली जाती है।
 
आर्यभट्ट के सिद्धांत पर 'भास्कर प्रथम' ने टीका लिखी। भास्कर के 3 अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं- 'महाभास्कर्य', 'लघुभास्कर्य' एवं 'भाष्य'। खगोल और गणितशास्त्र- इन दोनों क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के स्मरणार्थ भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया था।
 
आर्यभट्ट ने सूर्य से विविध ग्रहों की दूरी के बारे में बताया है। वह आजकल के माप से मिलता-जुलता है। आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर मानी जाती है। इसे AU ( Astronomical unit) कहा जाता है। इस अनुपात के आधार पर निम्न सूची बनती है।
 
बुध : आर्यभट्ट का मान 0.375 एयू - वर्तमान मान 0.387 एयू
शुक्र : आर्यभट्ट का मान 0.725 एयू - वर्तमान मान 0.723 एयू
मंगल : आर्यभट्ट का मान 1.538 एयू - वर्तमान मान 1.523 एयू
गुरु : आर्यभट्ट का मान 4.16 एयू - वर्तमान मान 4.20 एयू
शनि : आर्यभट्ट का मान 9.41 एयू - वर्तमान मान 9.54 एयू

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