भगवान जगन्नाथ के साथ विराजित कौन हैं बलभद्र और सुभद्रा, जानिए

द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। आओ जानते हैं बलभद्र और सुभद्रा के बारे में कुछ खास।
 
 
बलभद्र : 
1. भगवान बलभद्र को बलराम, दाऊ और बलदाऊ भी कहते हैं। बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। 
 
2. बलभद्र को शेषनाग तो भगवान जगन्नाथ अर्थात श्रीकृष्ण को विष्णुजी का अवतार माना जाता है।
 
3. कहते हैं कि जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में शेषावतार भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षण करके नन्द बाबा के यहां निवास कर रही श्री रोहिणीजी के गर्भ में पहुंचा दिया था। इसलिए उनका एक नाम संकर्षण पड़ा। श्रीकृष्‍ण और बलराम की माताएं अलग अलग हैं लेकिन पिता एक ही हैं। हालांकि देखा जाए तो पहले वे देवकी के गर्भ में ही थे।
 
4. बलराम जी का विवाह सतयुग के महाराज कुकुदनी की पुत्री रेवती से हुआ था। रेवती बलरामजी से बहुत लंबी थी तो बलरामजी ने उन्हें अपने हल से अपने समान कर दिया था।
 
4. जगन्नाथ की रथयात्रा में बलभद्रजी का भी एक रथ होता है। यह गदा धारण करते हैं। बलरामजी ने दुर्योधन और भीम दोनों को ही गदा सिखाई थी। उनके लिए कौरव और पांडव दोनों ही समान थे इसलिए उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया था। मौसुल युद्ध में यदुवंश के संहार के बाद बलराम ने समुद्र तट पर आसन लगाकर देह त्याग दी थी।
 
सुभद्रा : 
1. योगमाया के अलावा सुभद्रा भी श्रीकृष्ण की बहन थीं। 
 
2. बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह कौरव कुल में हो लेकिन बलराम के हठ के चलते कृष्ण ने सुभद्रा का अर्जुन के हाथों हरण करवा दिया था। बाद में द्वारका में सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ।
 
3. विवाह के बाद वे एक वर्ष तक द्वारका में रहे और शेष समय पुष्कर क्षेत्र में व्यतीत किया। 12 वर्ष पूरे होने पर वे सुभद्रा के साथ इंदप्रस्थ लौट आए।
 
4. सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु था जिसकी महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह फंसने के कारण दुर्योधन, कर्ण सहित कुल सात आठ लोगों ने मिलकर निर्मम हत्या कर दी थी। अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा थी जिसके गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ और परीक्षित का पुत्र जनमेजय था।
 
5. कहा जाता है कि नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मिलने भाई दूज के दिन उनके घर पहुंचे थे। सुभद्रा ने उनका स्वागत करके अपने हाथों से उन्हें भोजन कराकर तिलक लगाया था।
 
6. पुरी, उड़ीसा में 'जगन्नाथ की यात्रा' में बलराम तथा सुभद्रा दोनों की मूर्तियां भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ ही रहती हैं।
 
7.सुभद्रा वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी की पुत्री थीं, जबकि वसुदेकी की दूसरी पत्नी देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण थे। इस तरह श्रीकृष्ण और सुभद्रा के पिता एक ही थे परंतु माताएं अलग अलग थी।

रथ यात्रा निकालने की परंपरा : पौराणिक मततानुसार स्नान पूर्णिमा यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगत के नाथ श्री जगन्नाथ पुरी का जन्मदिन होता है। उस दिन प्रभु जगन्नाथ को बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा के साथ रत्नसिंहासन से उतार कर मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है। 108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है। फिर मान्यता यह है कि इस स्नान से प्रभु बीमार हो जाते हैं उन्हें ज्वर आ जाता है। तब 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते हैं। इस 15 दिनों की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता। इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है। 15 दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। जिसे नव यौवन नैत्र उत्सव भी कहते हैं। इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और बडे भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं।
 

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