हिन्दू धर्म में भैरव को विशाल आकार के काले शारीरक वर्ण वाले, हाथ में भयानक दंड धारण किए हुए और साथ में काले कुत्ते की सवारी करते हुए वर्णन किया गया है। दक्षिण भारत में ये 'शास्ता' के नाम से तथा माहाराष्ट्र राज्य में ये 'खंडोबा' के नाम से जाने जाते हैं। मुख्यत: तीन भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव, दूसरे बटुक भैरव और तीसरे आनंद भैरव। श्री लिंगपुराण 52 भैरवों का जिक्र मिलता है। मुख्य रूप से आठ भैरव माने गए हैं- 1.असितांग भैरव, 2. रुद्र भैरव, 3. चंद्र भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव और 8. संहार भैरव। आओ जानते हैं भगवान भैरव के प्रसिद्ध गोलू देवता के खास मंदिर की संक्षिप्त जानकारी।
1. नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। नैनीताल जिले के भवाली से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर बसा है रमणीक, शांत एंव धार्मिक स्थल 'घोड़ाखाल'। यह देवता न्याय के रूप में जाने जाते हैं। लोग यहां पर कागजों पर अपनी मन्नतें लिख कर जाते हैं। किंवदन्तियों के अनुसार गोलू देवता की उत्पत्ति कत्यूर वंश के राजा झालराई से मानी जाती है। राजा की आठवीं रानी के गर्भ से भगवान भैरव ने स्वयं जन्म लिया था।
2. गोलू देवता कुमाऊं क्षेत्र के मुख्य देवता है। डाना गोलू देवता गैराड मंदिर, बिंसर वन्यजीव अभ्यारण्य के मुख्य द्वार से लगभग 2 किमी दूर पर है, और लगभग 15 किमी अल्मोड़ा से दूर है। यहां के मंदिर की कथा श्री कल्याण सिंह बिष्ट (कालबिष्ट) से जुड़ी हुई है। गरीबों के मसीहा कालबिष्ट का सिर काट दिया था। श्री कालबिष्ट जी का शरीर डाना गोलू गैराड में गिर गया और उसका सिर अल्मोड़ा से कुछ किलोमीटर दूर कपडखान में गिर पड़ा। डाना गोलू में, गोलू देवता का मूल और सबसे प्राचीन मंदिर है। गोलू देवता को भगवान शिव का अंश माना जाता है। उनके भाई को कलवा भैरव के रूप जाना जाता है। कुमाऊ के कई गांवों में गोलू देवता को प्रमुख देवता (इष्ट/ कुल देवता) के रूप में भी प्रार्थना की जाती है।