हिन्दू कैलेंडर का प्रथम माह है चैत्र और अंतिम है फाल्गुन। दोनों ही माह वसंत ऋतु में आते हैं। ईसाई माह अनुसार यह मार्च में आता है। चैत्र की प्रतिपदा तिथि से ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है।
ईरान में इस तिथि को 'नौरोज' यानी 'नया वर्ष' मनाया जाता है। आंध्र में यह पर्व 'उगादिनाम' से मनाया जाता है। उगादिका अर्थ होता है युग का प्रारंभ, अथवा ब्रह्मा की सृष्टि रचना का पहला दिन।
इस प्रतिपदा तिथि को ही जम्मू-कश्मीर में 'नवरेह', पंजाब में वैशाखी, महाराष्ट्र में 'गुडीपड़वा', सिंध में चेतीचंड, केरल में 'विशु', असम में 'रोंगली बिहू' आदि के रूप में मनाया जाता है।
विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से न केवल नवरात्रि में दुर्गा व्रत-पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव का जन्म हुआ था।
प्राचीन काल में दुनिया भर में मार्च को ही वर्ष का पहला महिना माना जाता था। आज भी बहीखाते का नवीनिकरण और मंगल कार्य की शुरुआत मार्च में ही होती है। ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। मार्च से ही सूर्य मास अनुसार मेष राशि की शुरुआत भी मानी गई है।
चैत्र माह की शुरुआत : अमावस्या के पश्चात चन्द्रमा जब मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में प्रकट होकर प्रतिदिन एक-एक कला बढ़ता हुआ 15वें दिन चित्रा नक्षत्र में पूर्णता को प्राप्त करता है, तब वह मास 'चित्रा' नक्षत्र के कारण 'चैत्र' कहलाता है। इसे संवत्सर कहते हैं जिसका अर्थ है ऐसा विशेषकर जिसमें बारह माह होते हैं।
इस दिन का महत्व : पौराणिक मान्यता अनुसार ब्रह्माजी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। इसी दिन भगवान विष्णु ने दशावतार में से पहला मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में अथाह जलराशि में से मनु की नौका का सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था। प्रलयकाल समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि की शुरुआत हुई।
इस दिन क्या करें : चैत्र माह की शुरुआत शुक्ल प्रतिपदा से होती है यह कल्पादि तिथि है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही सत युग का प्रारंभ माना जाता है। इस दिन पहले तो सभी को नववर्ष की बधाईं दें। फिर इस माह के प्रारम्भ से चार मास तक जलदान करना चाहिए।
कौन सा पूजन करें : हिन्दू धर्म के माह के दो हिस्से होते हैं पहला शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष। चैत्र माह की शुरुआत शुक्ल प्रतिपदा तिथि से होती है। शुक्ल अर्थात जब चंद्र की कलाएं बढ़ती है और फिर अंत में पूर्णिमा आती है। इस माह की प्रत्येक तिथि को किसी न किसी देवता के पूजन का विधान है। जैसे-
शुक्ल पक्ष :
शुक्ल तृतीयों को उमा, शिव तथा अग्नि का पूजन करना चाहिए। शुक्ल तृतीया को दिन मत्स्यजयन्ती मनानी चाहिए, क्योंकि यह मन्वादि तिथि है। चतुर्थी को गणेशजी का पूजन करना चाहिए। पंचमी को लक्ष्मी पूजन तथा नागों का पूजन। षष्ठी के लिए स्वामी कार्तिकेय की पूजा। सप्तमी को सूर्यपूजन।
अष्टमी को मां दुर्गा का पूजन और इस दिन का ब्रह्मपुत्र नदी में स्नान करेन का महतत्व भी है। नवमी को भद्रकाली की पूजा करना चाहिए। दशमी को धर्मराज की पूजा। शुक्ल एकादशी को कृष्ण भगवान का दोलोत्सव अर्थात कृष्णपत्नी रुक्मिणी का पूजन। द्वादशी को दमनकोत्सव मनाया जाता है।
त्रयोदशी को कामदेव की पूजा। चतुर्दशी को नृसिंहदोलोत्सव, एकवीर, भैरव तथा शिव की पूजा। अंत में पूर्णिमा को मन्वादि, हनुमान जयंती तथा वैशाख स्नानारम्भ किया जाता है। वैसे वायु पुराणादि के अनुसार कार्तिक की चौदस के दिन हनुमान जयन्ती अधिक प्रचलित है। चैत्र मास की पूर्णिमा को 'चैते पूनम' भी कहा जाता है।
कृष्ण पक्ष :
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहते हैं। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं। शीत ऋतु की शुरुआत आश्विन मास से होती है, सो आश्विन मास की दशमी को 'हरेला' मनाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत चैत्र मास से होती है, सो चैत्र मास की नवमी को हरेला मनाया जाता है। इसी प्रकार से वर्षा ऋतु की शुरुआत श्रावण माह से होती है, इसलिये श्रावण में हरेला मनाया जाता है।