नदी पार के इस आषाढ़ी, प्रात मुखर को। रे, मेरे मन, खींच हृदय में, अपने भर ले।
उक्त पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने गीतांजलि में पद्मा नदी के बारे में भाव-विभोर होकर कही थी। सन् 1891वे में गुरुदेव पद्मा नदी पर नौकाघर में सपरिवार रहा करते थे। पद्मा नदी के आसपास रहने वाले गाँववासियों के वे बहुत नज़दीक थे। ग्रामीणों की गरीबी तथा बेबसी के स्थिति ने रवींद्रनाथ टैगौर के लेखन पर गहरा असर किया है।
पद्मा नदी से रवींद्रनाथ ठाकुर को बहुत लगाव था। इसका प्रभाव उनकी पुस्तक सोने की नौका तथा चित्रगत में देखा जा सकता है। इसके अलावा अपनी भतीजी इंदिरा देवी चौधरी को लिखे पत्र में उन्होंने पद्मा नदी के बारे में विवरण दिया है।
वेद, पुराण, रामायण तथा महाभारत जैसी पौराणिक कथाओं में पद्मा नदी का उल्लेख मिलता है। बांग्लादेश में स्थित यह नदी तीन मुख्य नदियों में से एक है। इस नदी का स्रोत हिमालय के गंगौत्री में है। कल-कल करती गंगा बंगाल की खाड़ी से बहते हुए चपाई नाबागंज ज़िले से घुसकर निकलती है। शिवगंज के पश्चिम दिशा में से बहती हुई, भागीरथी दक्षिण दिशा की ओर बहती है। जिस स्थान से भागीरथी दूसरी दिशा की ओर मुड़ जाती है उसे पद्मा नदी कहते हैं।
जहाजों के माध्यम से पर्यटकों को पद्मा नदी के पास स्थित मानीकॉंज एवं हरिराम के दर्शन कराए जाते हैं। गाँव के लहलहाते खेत, सुहावना मौसम तथा रंग बिरंगे पक्षियों को पंख फैलाकर उड़ते देख कर मन प्रफुल्लित हो उठता है। गाँव में प्रवेश करते ही वहाँ पर खेलते बच्चे, आँगन में काम करती महिलाएँ दिखाई पड़ती है। यहाँ विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बाज़ार में मिलती हैं। उन पर अंकित कलाकारी को देख कर पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
राजाशाही नगर पद्मा नदी के पास स्थित है। प्राचीन समय से जुड़ा यह नगर वास्तुशिल्प एवं इतिहास की दृष्टि से प्रसिद्ध है। यहाँ अब तक प्राचीन काल की धरोहर सुरक्षित है - मोहास्तंगर, पहाड़पुर ,बौद्ध धर्म के मठ, कांटाजीस मंदिर, रामसागर दिघी तथा बोरेंद्र अनुसंधान संग्रहालय यहाँ की खास शोभा है। बोगरा राजाशाही क्षेत्र का एक अभिन्न अंग हैं इसे गेटवे ऑफ उत्तर बंगाल कहते हैं। इसे महास्तंगर भी कहा जाता हैं।
गईबंधा भी राजाशाही नगर का एक विशेष हिस्सा है। वर्धान कुंति के वास्तुशिल्पीय धरोहर एवं ऐतिहासिक स्मारक यहाँ की विशिष्ट पहचान हैं। अविभाजित भारत ने जब अँग्रेज सरकार
गईबंधा भी राजाशाही नगर का एक विशेष हिस्सा है। वर्धान कुंति के वास्तुशिल्पीय धरोहर एवं ऐतिहासिक स्मारक यहाँ की विशिष्ट पहचान हैं। अविभाजित भारत ने जब अँग्रेज सरकार के खिलाफ नारा उठाया था तब सन् 1921 में गईबंधा के निवासियों ने भी अँग्रेज प्रशासन के खिलाफ नारे बुलन्द किए थे। सन् 1946 में ज़िले में अँग्रेज सरकार के खिलाफ तेभागा का आंदोलन शुरू किया गया था।
बॉरिसाल, चंग्रादीप के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह स्थान गंगा डेल्टा पर स्थित है। मुख्य बंदरगाहों में से एक, इस क्षेत्र में चावल, गन्ने, मछली तथा सुपारी को जहाज पर लादा जाता है। परिणामस्वरूप आज राष्ट्रीय एवं अतंराष्ट्रीय स्तर का जाना-माना आयात-निर्यात केंद्र है।
मुख्य पर्यटक स्थल-कुआँ, काटा, दुर्गा सागर ऐसे स्थान हैं जहाँ स्टीमर नाव के माध्यम से यात्रा की जा सकती है। इन्हीं के द्वारा ढाका एवं चिट्टागोंग क्षेत्र में भी यात्रा कर सकते हैं।
अतः बांग्लादेश की सुप्रसिद्ध पद्मा नदी एवं आसपास के इलाके ऐतिहासिक सौन्दर्य एवं प्राचीन वैभव में रचे-बसे हैं।
प्रमुख भाषा बंगला एवं अँग्रेजी हैं। पद्मा नदी की हिल्सा मछली काफी लोकप्रिय है।