जब किसी किशोरी को पहली बार मासिक स्राव आरंभ हो उसे रजोवृतारंभ (मीनार्कि) कहते हैं। किशोरावस्था एक ऐसी नाजुक अवस्था है जिस समय यौवनावस्था की शुरुआत होती है और साथ ही शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक परिवर्तन भी होना प्रारंभ हो जाते हैं। किशोरावस्था, बचपन और यौवनावस्था के बीच का अहम समय है। पूरे विश्व में 1/5 लोग किशोरावस्था में हैं, जबकि भारत में एक चौथाई जनसंख्या किशोरों की है। किशोरावस्था का प्रारंभ सेकंडरी सेक्युअल गुण के आने से होता है। इस समय किशोरी परिवार के लोगों की अपेक्षा मित्र अथवा दूसरे लोगों से ज्यादा प्रभावित होती है। इस समय ये लोग अपने शारीरिक परिवर्तनों से काफी हैरान रहते हैं और साथ ही साथ शर्म भी महसूस करने लगते हैं। यदि हम यौवनावस्था (प्यूबर्टी) के प्रारंभ की उम्र की बात करें तो यह 9 वर्ष से शुरू होती है। सामान्य लक्षण निम्नानुसार होते हैं-
* स्तन विकास * गुप्तांगों पर बालों का विकास * काँख में बालों का विकास * शारीरिक लंबाई का बढ़ना * रजोवृतारंभ
ये परिवर्तन उपरोक्त क्रमानुसार नहीं होते। कुछ किशोरियों में स्तन विकास पहले होता है तो किसी का गुप्तांगों पर रोम का विकास पहले प्रारंभ होता है। इस समय तक शरीर का करीब 90 प्रश विकास हो चुका होता है। स्तन विकास के 2 वर्ष के बाद ही सामान्यतः रजोवृतारंभ होता है। रजोवृतारंभ सामान्य रूप से भारत में 13 से 14 वर्ष (औसत 13.5 वर्ष) में प्रारंभ हो जाता है, जबकि पश्चिमी देशों में यह एक वर्ष पहले यानी 12.5 वर्ष में प्रारंभ होता है। इसके प्रारंभ होने में अनुवांशिक कारण तो होते ही हैं, परंतु खानपान एवं सामाजिक परिवेश भी प्रभावित करता है जो कि मस्तिष्क एवं हाइपोथेलेस नामक ग्रंथि के द्वारा संचालित होती है।
जब किसी लड़की में यौवनावस्था के परिवर्तन 8 वर्ष से पूर्व हों तो उसे समय से पूर्व (प्रीकोशियस प्यूबर्टी) कहते हैं व यदि वह 13 वर्ष के
हर माँ या स्त्री का कर्तव्य होता है कि वह बालिका को भयभीत करने के बजाय उसे यह समझाए कि यह एक सामान्य शारीरिक परिवर्तन है। इस मासिक स्राव में उसे अपनी शारीरिक सफाई पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए
पश्चात हो तो उसे (डीलेड प्यूबर्टी) देरी से मानते हैं।
हर माँ या स्त्री का कर्तव्य होता है कि वह बालिका को भयभीत करने के बजाय उसे यह समझाए कि यह एक सामान्य शारीरिक परिवर्तन है। इस मासिक स्राव में उसे अपनी शारीरिक सफाई पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। इसमें कोई विशेष या भयानक पेट दर्द नहीं होता है। उसे घर की चारदीवारी के बीच कैद होने की कोई जरूरत नहीं है। वो आराम से खेलकूद सकती है। यदि उसके मन में कोई शंकाएँ या जिज्ञासाएँ हैं तो माँ का कर्तव्य है कि या तो उसका निवारण करे या किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा करवाए। इस अवस्था में माँ व डॉक्टर की भूमिका मित्रवत होनी चाहिए।
ND
ND
* शहरी लड़कियों में यौवनावस्था ग्रामीण कन्याओं की अपेक्षा 2 वर्ष पहले आती है।
* घर व कार्यस्थल में तनाव के कारण यौवनावस्था जल्दी आती है।
* पोषण व उत्तम खुराक (अत्यधिक मोटी युवतियों में यौवनावस्था जल्दी आती है।) लेप्टिन नामक पदार्थ से बहुत फर्क होता है।
* असामान्य तापमान जैसे नाइजीरियन एवं एस्किमो लड़कियों में यौवनावस्था देर से होती है। 5 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सबसे सही रहता है।
* दूषित वातावरण एवं मौसम जैसे- सर्दियों में ज्यादा युवतियों को माहवारी आरंभ होती है बजाए गर्मियों के।
* व्यायाम, बैले डांसर, लंबी दूरी के धावक व वे लड़कियाँ जिनके शरीर में चर्बी का अनुपात कम होता है, उनमें यौवनावस्था देर से आती है।
* कुछ बीमारियाँ जैसे डाइबिटीज (मधुमेह), सिस्टिक फाइब्रोसिस, ग्लाइकोजन स्टोरेज डिसीजेज इत्यादि में यौवनावस्था देर से होती है।