नपुंसकता : इलाज की नई तकनीक

इंदौर शहर के प्रसिद्ध सर्जन डॉ. वीके अग्रवाल ने नपुंसकता को खत्म करने के लिए नई ऑपरेशन पद्धति ईजाद की है। इरेक्टाइल डिसफंक्शन नामक बीमारी के कारण जिन पुरुषों के लिंग में रक्त प्रवाह सामान्य नहीं होता उनके लिए यह तकनीक कारगर है। डॉ. अग्रवाल के अनुसार यह विश्व भर में ऐसा पहला ऑपरेशन है और इसके परिणाम वियाग्रा जैसी दवाइयों से बेहतर हैं।

एमजीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व डीन तथा पूर्व डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन (डीएमई) एवं हाल ही में चरक अवॉर्ड से सम्मानित डॉ. अग्रवाल पिछले 26 वर्षों से ओमेंटोपेक्सी पद्धति पर कार्य कर रहे हैं। इसके तहत आमाशय के पास स्थित रक्त नसों के गुच्छे 'ओमेंटम' को लंबा कर उसे उस स्थान पर ले जाया जाता है जहाँ रक्त संचरण प्रभावित है।

इन नसों के कारण प्रभावित स्थान पर नवीन नसें विकसित हो जाती हैं तथा रक्त संचरण सामान्य हो जाता है। डॉ. अग्रवाल द्वारा इस पद्धति को पैरों तथा हाथों के रक्त संचरण में, गैंगरीन तथा आँखों के लिए पूर्व में इस्तेमाल किया जाता रहा है।

मिली नई जिंदगी :- डॉ. अग्रवाल ने बताया कि पिछले दिनों उनके पास धार जिले के एक गाँव से नपुंसकता से पीड़ित 39 वर्षीय श्याम कुमार वर्मा (परिवर्तित नाम) आए। उन्होंने बताया कि 12 वर्ष के वैवाहिक जीवन में पिछले 10 वर्ष से वे इस बीमारी से पीड़ित थे और नीम-हकीम सहित कई चिकित्सा पद्धतियों से इलाज कराने में लाखों रुपए खर्च कर चुके थे। इसी मानसिक अवसाद में चार बार आत्महत्या करने की कोशिश भी कर चुके थे।

10 अगस्त 2006 को डॉ. अग्रवाल ने ओमेंटोपेक्सी पद्धति से लिंग का दुनिया का पहला ऑपरेशन किया। इसके बाद श्याम की जिंदगी में बहुत सुधार आ गया है और वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से उन्होंने कहा है कि वे अब 110 प्रतिशत सामान्य हैं।

पद्धति के बारे में ऐसे आया विचार
डॉ. अग्रवाल के अनुसार इस मरीज के लिंग में रक्त संचरण मात्र 30 प्रतिशत था। वे कहते हैं कि पिछले 26 वर्षों से वे ओमेंटम को लिंग के पास से प्रभावित स्थान पर ले जा रहे थे तब उन्होंने कभी नहीं सोचा कि इससे लिंग के अवरुद्ध रक्त प्रवाह को भी सामान्य किया जा सकता है। श्याम की समस्या सुनने के बाद उन्होंने लंदन के हैमरस्मिथ हॉस्पिटल एंड पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट के यूरोलॉजिस्ट डॉ. संजीव कुमार से विचार-विमर्श किया। इसके बाद ओमेंटोपेक्सी ऑपरेशन पद्धति से इसका इलाज करने का निर्णय लिया गया।

नई खोज को दिया जन्म :- डॉ. अग्रवाल ने पिछले वर्ष राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से मुलाकात की और ओमेंटोपेक्सी के बारे में बताया। डॉ. कलाम ने पूछा कि क्या ओमेंटम के ये गुण स्टेम सेल (कोशिका) के कारण हैं? डॉ. अग्रवाल उस समय जवाब नहीं दे पाए, मगर लौट कर उन्होंने इसका अध्ययन किया तो पूर्व में छपे ऐसे अध्ययन के बारे में जानकारी मिली।

वे कहते हैं कि आजकल स्टेम सेल्स पर बहुत कार्य किया जा रहा है। अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए लोग हजारों रुपए में स्टेम सेल का संरक्षण करते हैं जिससे उसे 20 वर्षों बाद उपयोग किया जा सके। इसे अम्लाइकल कॉर्ड तथा बोन मैरो से लिया जाता है, लेकिन अब किसी स्टेम सेल बैंक की आवश्यकता नहीं पड़ेगी क्योंकि स्टेम सेल बैंक तो उदर में ही मौजूद है।

अब गैंगरीन होने पर पैर काटने की जरूरत नहीं पड़ती और इस पद्धति से पैरों के रक्त प्रवाह को सुचारु किया जा सकता है। इसके अलावा रेटिनाईटिस पिग्मेंटोसा (इसमें आँखों की रोशनी चली जाती है) के 87 मरीजों के ऑपरेशन डॉ. अग्रवाल ने डॉ. पीएस हार्डिया के साथ किए हैं।

डिस्कवरी पर भी होगा प्रसारण :- डॉ. अग्रवाल द्वारा प्रयोग में लाई जा रही ओमेंटोपेक्सी तकनीक या 'अग्रवाल पद्धति' का प्रसारण डिस्कवरी चैनल पर भी हो चुका है। उनके अनुसार नपुंसकता को दूर करने वाले ऑपरेशन का प्रसारण भी कुछ समय बाद किया जाएगा।

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