शरद पूर्णिमा कब है, जानिए इस दिन का धार्मिक और औषधीय महत्व
दूध में केसर घुली चांदनी जब बरसेगी हमारे आंगन में तब शरद की पूनम का दिन होगा...
यूं तो साल में 12 पूर्णिमा तिथियां आती हैं। लेकिन अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को बहुत खास माना जाता है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
इस बार शरद पूर्णिमा 30 तारीख को है। शरद पूर्णिमा से ही शरद ऋतु का आगमन होता है।
शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की रोशनी से रात्रि में भी चारों और उजियारा रहता है।
क्या है महत्व : पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बूंदें झरती हैं। पूर्णिमा की रात में जिस भी चीज पर चंद्रमा की किरणें गिरती हैं उसमें अमृत का संचार होता है।
इसलिए शरद पूर्णिमा की रात में खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है। पूरी रात चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखा जाता है सुबह उठकर यह खीर प्रसाद के रुप में ग्रहण की जाती है। चंद्रमा की रोशनी में रखी गई खीर खाने से शरीर के रोग समाप्त होते हैं।
शरद पूर्णिमा की रात को लक्ष्मी पूजन का भी बहुत महत्व माना गया है। इस दिन मां लक्ष्मी का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा पर लक्ष्म पूजा करने से वे प्रसन्न होती हैं।
शरद पूर्णिमा तिथि 2020
30 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 47 मिनट से पूर्णिमा तिथि का आरंभ हो जाएगा।
अगले दिन यानि 31 अक्टूबर रात 8 बजकर 21 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी।
30 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि आरंभ होने के कारण इसी दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी।
रोगियों के लिए वरदान है शरद पूर्णिमा की रात
एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।
लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।
वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औषधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।