सांई बाबा का हनुमानजी से क्या है कनेक्शन, जानिए 5 रहस्य

संतों में सांई बाबा सर्वोच्च हैं। वे सिद्ध पुरुष, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, दलायु और चमत्कारिक हैं। जिन्होंने साईं को भजा उसके संकट उसी तरह दूर हो गए जिन्होंने हनुमान को भजा और तुरंत ही आराम पाया। आप जानिए साई बाबा और हनुमानजी के बीच क्या है कनेक्शन।
 
 
1. शिरडी में सांई समाधि परिसर में एक हनुमान मंदिर है। शिरडी के सांई मंदिर के प्रांगण में सभी लोगों ने हनुमानजी की दक्षिणमुखी प्रतिमा और उनके मंदिर को जरूर देखा होगा। सांई भी नित्य हनुमानजी के दर्शन करते थे। इसीलिए देश के हर सांई मंदिर के पास या प्रांगण में हनुमानजी की प्रतिमा होना जरूरी है।
 
 
2. सांई के जन्म स्थान पाथरी (पातरी) पर एक मंदिर बना है। मंदिर के अंदर सांई की आकर्षक मूर्ति रखी हुई है। यह बाबा का निवास स्थान है, जहां पुरानी वस्तुएं जैसे बर्तन, घट्टी और देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी हुई हैं। इन्हीं मूर्तियों में एक मूर्ति हनुमानजी की भी है। यह मूर्ति बहुत पुरानी है।
 
 
3. शशिकांत शांताराम गडकरी की किताब 'सद्‍गुरु सांई दर्शन' (एक बैरागी की स्मरण गाथा) अनुसार सांई का परिवार हनुमान भक्त था। उनके माता पिता के पांच पुत्र थे। पहला पुत्र रघुपत भुसारी, दूसरा दादा भूसारी, तीसरा हरिबाबू भुसारी, चौथा अम्बादास भुसारी और पांचवें बालवंत भुसारी थे। सांई बाबा गंगाभाऊ और देवकी के तीसरे नंबर के पुत्र थे। उनका नाम था हरिबाबू भूसारी।
 
 
4. सांई बाबा के इस जन्म स्थान से एक किलोमीटर दूर सांई बाबा का पारिवारिक मारुति मंदिर है। मारुति अर्थात हनुमानजी का मंदिर। वे उनके कुल देवता हैं। यह मंदिर खेतों के मध्य है, जो मात्र एक गोल पत्थर से बना है। यहीं पास में एक कुआं है, जहां सांई बाबा स्नान कर मारुति का पूजन करते थे। किसी कारणवश गुरुकुल छोड़ने के बाद सांई बाबा हनुमान मंदिर में ही अपना समय व्यतीत करने लगे थे, जहां वे हनुमान पूजा-अर्चना करते और सत्संगियों के साथ रहते थे।
 
 
5. एक जीवनी के अनुसार श्री शिरडी सांई बाबा का जन्म भुसारी परिवार में हुआ था जिनके पारिवारिक देवता कुम्हार बावड़ी के श्री हनुमान थे, जो पाथरी के बाहरी इलाके में थे। सांई बाबा प्रभु श्रीराम और हनुमान की भक्ति किया करते थे। उन्होंने अपने अंतिम समय में राम विजय प्रकरण सुना और 1918 में देह त्याग दी।


अंत में पढ़ें साईं बबा की अयोध्या यात्रा
अपने पिता गंगाभाऊ की मृत्यु के बाद साईं बाबा को वली फकीर अपने साथ 8 वर्ष की उम्र में इस्लामाबाद ले गए थे। वहां उनकी मुलाकात रोशनशाह बाबा से हुई जो उनको अजमेर में ले आए। रोशनशाह बाबा कहां के थे यह नहीं मालूम। रोशनशाह बाबा की मृत्यु के समय हरिबाबू ऊर्फ साई बाबा इलाहाबाद में थे। रोशनशाह बाबा के इंतकाल के बाद बाबा एक बार फिर से अकेले हो गए थे।
 
 
बाबा की उम्र छोटी थी तब एक समय की बात है। सांई बाबा रोशनशाह बाबा के साथ इलाहाबाद में रहते थे। उनके इंतकाल के बाद बाबा वहीं रुके रहे क्योंकि उस वक्त वहां कुंभ पर्व चल रहा था। कोने-कोने से देश के संत आए हुए थे जिसमें 'नाथ संप्रदाय' के संत भी थे। वे नाथ संप्रदाय के प्रमुख से मिले और उनके साथ ही संत समागम और सत्संग किया। बाद में वे उनके साथ अयोध्या गए और उन्होंने राम जन्मभूमि के दर्शन किए, जहां उस वक्त मंदिर को तोड़कर बाबर द्वारा बनाया गया बाबरी ढांचा खड़ा था।
 
 
अयोध्या पहुंचने पर नाथपंथ के संत ने उन्हें सरयू में स्नान कराया और उनको नाथपंथ में दीक्षा देकर उनको एक चिमटा (सटाका) भेंट किया। यह नाथ संप्रदाय का हर योगी अपने पास रखता है। फिर नाथ संत प्रमुख ने उनके कपाल पर चंदन का तिलक लागाकर कहा कि वे हर समय इसका धारण करके रखें। उल्लेखनीय है कि जीवनपर्यंत बाबा ने तिलक धारण करके रखा, लेकिन सटाका उन्होंने हाजी बाबा को भेंट कर दिया था। अयोध्या यात्रा के बाद नाथपंथी तो अपने डेरे चले गए, लेकिन हरिबाबू फिर से अकेले रह गए। बाबा घूमते-फिरते राजपुर पहंचे, वहां से चित्रकूट और फिर बीड़। बीड़ से वे फिर से अपने जन्म स्थन पाथरी पहुंच गए। वहां से वे घुमते फिरते शिरडी जा पहुंचे।
 

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