समस्त देवगण और देवियाँ भी उस नृत्य में सहयोगी बनकर विभिन्न प्रकार के वाद्य बजाने लगे। वीणावादिनी माँ सरस्वती वीणा-वादन करने लगीं, विष्णु भगवान् मृदंग बजाने लगे, देवराज इंद्र वंशी बजाने लगे, ब्रह्माजी हाथ से ताल देने लगे और लक्ष्मीजी गायन करने लगीं। अन्य देवगण, गंधर्व, किन्नर, यक्ष, उरग, पन्नग, सिद्ध, अप्सराएँ, विद्याधर आदि भाव-विह्वल होकर भगवान् शिव के चतुर्दिक् खड़े होकर उनकी स्तुति में तल्लीन हो गए।