-प्रितेश मिश्र
पारद शिवलिंग से धन-धान्य, आरोग्य, पद-प्रतिष्ठा, सुख आदि भी प्राप्त होते हैं। नवग्रहों से जो अनिष्ट प्रभाव का भय होता है, उससे मुक्ति भी पारद शिवलिंग से प्राप्त होती है।
पारे के बारे में तो प्राय: आप सभी जानते होंगे कि पारा ही एकमात्र ऐसी धातु है, जो सामान्य स्थिति में भी द्रव रूप में रहता है। मानव शरीर के ताप को नापने के यंत्र तापमापी अर्थात थर्मामीटर में जो चमकता हुआ पदार्थ दिखाई देता है, वही पारा धातु होता है। पारद शिवलिंग इसी पारे से निर्मित होते हैं। पारे को विशेष प्रक्रियाओं द्वारा शोधित किया जाता है जिससे वह ठोस बन जाता है फिर तत्काल उसके शिवलिंग बना लिए जाते हैं।
पारद शिवलिंग बहुत ही पुण्य फलदायी और सौभाग्यदायक होते हैं। पारद शिवलिंग के महत्व का वर्णन ब्रह्मपुराण, ब्रह्मवेवर्त पुराण, शिव पुराण, उपनिषद आदि अनेक ग्रंथों में किया गया है। पारद शिवलिंग से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। रुद्र संहिता में यह विवरण प्राप्त होता है कि रावण रसायन शास्त्र का ज्ञाता और तंत्र-मंत्र का विद्वान था। उसने भी रसराज पारे के शिवलिंग का निर्माण एवं पूजा-उपासना कर शिवजी को प्रसन्न किया था।
झाबुआ व बस्तर में रहने वाले आदिवासी, जो शहरों में जड़ी-बूटी बेचते आसानी से देखे जा सकते हैं, उनमें से कई पारद को ठोस बनाने की कला जानते हैं, परंतु पारद से शिवलिंग एक विशेष समय में बनाए जाते हैं जिसे 'विजयकाल' कहा जाता है। तत्पश्चात अच्छा शुभ मुहूर्त देखकर शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई जाती है। पारद शिवलिंग की पूजा-अर्चना का तरीका सामान्य शिवलिंग के समान ही होता है। जिस घर में पारद शिवलिंग होता है, वह धन-धान्य से परिपूर्ण और दुर्गुणों से मुक्त होता है।