कलश पूजन

भगवान शिव व अन्य देवी-देवताओं की पूजा में जल-कलश के पूजन की प्राचीन परंपरा है। पूजास्थल पर रखी प्रत्येक वस्तु, जल, सामग्री को पवित्र करने के लिए पूजन करना चाहिए। कलश पर रोली स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर, उसके गले पर मौली बाँध दें। फिर कलश रखने के स्थान पर रोली, कुंकुम से अष्टदल कमल की आकृति बनाकर भूमि को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
 
ॐ भूरसि भूमिरसि अदितिरसि
विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धार्त्री ।
 
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ(गुँ)ह
पृथ्वीं मा हि(गुँ)सीः॥
 
इसके बाद सप्तधान्य या गेहूँ, अक्षत उस स्थान पर अर्पित करने के बाद कलश को उस पर स्थापित करें। स्थापना के समय निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है:-
 
ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्वन्दनवः ।
पुनरुर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं
धुक्ष्वोरुधारा पयस वती पुनर्मा विशताद्रयिः ॥
 
इसके बाद कलश में जल भरकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें:-
 
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य
स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य
ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदन्मसि
वरुणस्य ऋतसदनमा सीद ।
 
इसके साथ कलश में चंदन, सर्वोषधि (मुरा, जटामांसी, वच, कुष्ठ, हल्दी, दारु हल्दी, सठी, चम्पक, मुक्ता आदि), दूब, पंचपल्लव (बरगद, गूलर, पीपल, आम, पाकर) और सप्तमृत्तिका (घुड़साल, हाथी खाना, बांबी, संगम नदियों की मिट्टी, तालाब, गौशाला और राजमहल के द्वार की मिट्टी) यदि आराधक सप्त जगह की मिट्टी एकत्र न कर पाए तो सुपारी और पंच रत्न आदि जल कलश में डाल सकते हैं। इसके बाद कलश पर चावल का पात्र रखकर लाल वस्त्र से लपेटा नारियल रखना चाहिए।
 
अब वरुण देवता का स्मरण करते हुए आह्वान करें:-

ॐ भूर्भुवः स्वः भो वरुण इहागच्छ,
इहतिष्ठ, स्थापयामि पूजयामि।
 
अक्षत और पुष्प हाथ में लेकर उच्चारण करें :-
 
ॐ अपांपतये वरुणाय नमः।
 
इसके बाद अक्षत और पुष्प देवता को अर्पित कर दें।
 
अब कलश के जल में देवी-देवताओं के आह्वान के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :-
 
कलशस्य मुखे विष्णुः कंठे रुद्रः समाश्रितः ।
मूले त्वस्य स्थतो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥
 
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुंधराः ।
अर्जुनी गोमती चैव चंद्रभागा सरस्वती ॥
 
कावेरी कृष्णवेणी च गंगा चैव महानदी ।
ताप्ती गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥
 
नदाश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथापराः ।
पृथिव्यां यान तीर्थानि कलशस्तानि तानि वैः ॥
 
सर्वे समुद्राः सरितस्तीथर्यानि जलदा नदाः ।
आयान्तु मम कामस्य दुरितक्षयकारकाः ॥
 
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ।
अत्र गायत्री सावित्री शांति पुष्टिकरी तथा ॥
 
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः ।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ॥
 
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन्‌ सन्निधिं कुरु ।
नमो नमस्ते स्फटिक प्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधनाथाय नमो नमस्ते ॥
 
ॐ अपां पतये वरुणाय नमः ।
ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः।

कलश स्थापना (संक्षिप्त विधि)
 
कलश स्थापित करने की संक्षिप्त विधि निम्न है-
 
कलश स्थापित किए जाने हेतु लकड़ी के एक पाटे पर अष्टदल कमल बनाकर उस पर धान्य(गेहूँ) बिछा दें। कलश (मिट्टी अथवा तांबे का लोटा) पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर लोटे के गले में तीन धागे वाली मौली (नाड़ा) लपेटें व धान्य पर कलश रखकर जल से भर दें एवं उसमें चंदन, औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि), दूब, पाँच पत्ते (बरगद, गूलर, पीपल, आम, पाकड़ अथवा पान के पत्ते), कुशा एवं गौशाला आदि की मिट्टी, सुपारी, पंचरत्न (यथाशक्ति) व द्रव्य छोड़ दें। नारियल पर लाल कपड़ा लपेटकर, चावल से भरे एक पूर्ण पात्र को कलश पर स्थापित कर उस पर नारियल रख दें। हाथ जोड़कर कलश में वरुण देवता का आह्वान करें :-
 
ॐ तत्वा यामि ब्रह्मणा वंदमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश गुं समा न आयुः प्र मोषीः॥
 
हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
 
'ॐ अपांपतये वरुणाय नमः' बोलकर कलश पर अक्षत, पुष्प अर्पित करें।
 
अब कलश पर सब देवताओं का ध्यान कर आह्वान करें एवं चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित कर पूजन करें। अंत में बोलें :-
 
'कृतेन अनेन पूजनेन कलशे
वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।'

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