पितरों की मुक्ति हेतु किए जाने वाले कर्म तर्पण, भोज और पिंडदान को ( pitru shradh paksha ) उचित रीति से नदी के किनारे किया जाता है। इसके लिए देश में श्राद्ध पक्ष के लिए लगभग 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है जिनमें से एक है बिहार का गया। आपने देखा होगा कि चावल के पिंड बनाकर उसका पिंडदान किया जाता है परंतु गया में फल्गु नदी के तट पर बालू की रेत के पिंडदान ( Balu ka pind daan ) बनाकर दान किया जाता है। आखिर ऐसा क्यों करते हैं, जानिए ररहस्य।
गयाजी में फल्गुन नदी के तट पर बालू के पिंड बनाकर दान किए जाने का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। कहते हैं कि श्रीराम जी के वनवास के दौरान ही राजा दशरथ जी का देहांत हो गया था। तब वनवास के दौरान ही रामजी अपने अनुज लक्ष्मण और भार्या सीता के साथ गयाजी गए थे। वहां वे श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने के लिए नगर की ओर जा रहे थे तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है। इसी के साथ ही माता सीता को दशरथजी की आत्मा के दर्शन हुए, जो उनसे पिंडदान का कहने लगे।
इस अनुरोध के बात माता सीता ने वहीं फाल्गू नदी के तट के पास वटवृक्ष के नीचे केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाया और नदी के किनारे दशरथजी का पिंडदान कर दिया। सीताजी द्वारा किए गए पिंडदान से दशरथजी तृप्त हो गए और उन्हें आशीर्वाद देकर चले गए। तभी से यहां पर बालू के पिंडदान करने की परंपरा की शुरुआत होग गई।