एक समय केवल भारत ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व यानी उत्तरी अफ्रीका, तुर्की, मक्का-मदीना, ब्राजील, यूरोप, इटली, स्कॉटलैंड, फिजी, फ्रांस आदि देशों में अगणित शिवलिंग थे और भक्तिभाव से उनका पूजन किया जाता था।
सतयुग में एक देवता एवं वर्ण था मात्र 'शिव'। एक और त्रेतायुग में सबसे अधिक शिव मंदिरों का निर्माण और जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार परम शिवभक्त रावण, भगवान शिव के परम शिष्य परशुराम एवं दैत्य गुरु शुक्राचार्यजी ने मिलकर किया था, क्योंकि शिव मंदिर के जीर्णोद्धार से पितृदोष समाप्त होता है।
हमारे पूर्वजों ने जिन शिवालयों का निर्माण कराया था, वह उनकी आध्यात्मिक शक्ति का स्मरण था। उनका मन-हृदय उसी मंदिर में बसा हुआ था। मृत्यु उपरांत उन्हें जो भी योनि मिली हो, जैसे जीव-जंतु, पशु-पक्षी, कीट इत्यादि किसी भी योनि वे निवास कर रहे हो, यही इसी आशा और विश्वास से कि हमारे वंश का कोई भी पुत्र, पौत्री, कुटुम्बी या कोई भी जीर्ण-शीर्ण शिवालय का उद्धार करें ताकि पूर्वजों की भटकती हुईं आत्माओं का कल्याण हो सके और वे मुक्ति पा सकें।
ॐ मन्महागणाधि पतये नम:। ॐ लक्ष्मी नारायणाभ्यां नम:। ॐ उमा महेश्वराभ्यां नम:। ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:। ॐ शचीपुरन्दराभ्यो नम:। ॐ मातृपितृ चरण कमलेभ्यो नम:। इष्टदेवताभ्यो नम:। ॐ कुल देवताभ्यो नम:। ॐ ग्रामदेवताभ्यो नम:। ॐ स्थानदेवताभ्यो नम:। ॐ वास्तुदेवताभ्यो नम:। ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:। ॐ सिद्धि-बुद्धि शीतय श्री मन्महागणाधि पतये नम:।
अर्थात ॐ श्री मन्महागणाधिपति को प्रणाम है। ॐ लक्ष्मी और नारायण को नमस्कार है। ॐ उमा-महेश्वर को प्रणाम है। ॐ वाणी (सरस्वती) और हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा) को प्रणाम है। ॐ माता-पिता के चरण कमलों में प्रणाम है। ॐ ईष्ट देवता को प्रणाम है। ॐ कुल देवताओं को प्रणाम है। ॐ ग्राम देवताओं को प्रणाम है। ॐ स्थान देवताओं को प्रणाम है। ॐ सभी ब्राह्मणों को प्रणाम है। ॐ सिद्धि-बुद्धि सहित श्रीमान महागणाधिपति को प्रणाम है।