दरअसल, शास्त्रों में कहा गया है कि हम अन्न-जल को अग्नि को दान करते हैं। अग्नि उक्त अन्न-जल को हमारे पितरों तक पहुंचाकर उन्हें तृप्त करती है। श्राद्ध और तर्पण जिसके निमित्त किया गया उस तक जल और अग्नि के माध्यम से यह सुगंध रूप में पहुंचकर उन्हें तृप्त करता है। वास्तव में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणित होकर उसी अनुमात और मात्रा में प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी वर्तमान में है। इस संबंध में पुराणों में कई जगहों पर उल्लेख मिलता है कि उस जीवित प्राणी को भी श्राद्ध के भोग का अंश मिलता है जिससे कि उसका हृदय तृप्त हो जाता है। जल, अग्नि और वायु उसके अंश को पहुंचाने में माध्यम बनते हैं।