पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक किया गया श्राद्ध देता हैं आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, धन और सुख
महर्षि के अनुसार श्राद्ध का महत्व तो यहां तक है कि श्राद्ध में भोजन करने के बाद जो आचमन किया जाता है तथा पैर धोया जाता है, उसी से पितृगण संतुष्ट हो जाते हैं। बंधु-बांधवों के साथ अन्न-जल से किए गए श्राद्ध की तो बात ही क्या है, केवल श्रद्धा-प्रेम से शाक के द्वारा किए गए श्राद्ध से ही पितर तृप्त होते हैं।
ब्रह्म पुराण के अनुसार 'जो व्यक्ति शाक के द्वारा श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःखी नहीं होता।' साथ ही ब्रह्म पुराण में वर्णन है कि 'श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। जिस कुल में जो बाल्यावस्था में ही मर गए हों, वे सम्मार्जन के जल से तृप्त हो जाते हैं।
गरुड़ पुराण के अनुसार 'पितृ पूजन (श्राद्ध कर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार 'श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।