विष्णु पुराण में कहा गया है- श्रद्धा तथा भक्ति से किए गए श्राद्ध से पितरों के साथ ब्रह्मा, इन्द्र, रुद्र दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, आठों बसु, वायु, विश्वेदेव, पितृगण, पक्षी, मनुष्य, पशु, सरीसृप, ऋषिगण तथा अन्य समस्त भूत प्राणी तृप्त होते हैं।
हर गृहस्थ को द्रव्य से देवताओं को, कव्य से पितरों को, अन्न से अपने बंधुओं, अतिथियों तथा भिक्षुओं को भिक्षा देकर प्रसन्न करें। इससे उसे यश, पुष्टि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। गौ-दान, भूमि दान या इनके खरीदने के लिए धन देने का विधान है।
इसका संकल्प ब्राह्मण भोजन के संकल्प के बाद इस प्रकार है : -
'ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु अद्य यथोक्त गुण विशिष्ट तिथ्यादौ... गौत्र... नाम ममस्य पितरानां दान जन्य फल प्राप्त्यर्थं क्रियामाण भगवत्प्रीत्यर्थं गौनिष्क्रय/ भूमि निष्क्रय द्रव्य वा भवते ब्राह्मणाय सम्प्रददे।'
दानों में गौ-दान, भूमि दान, तिल दान, स्वर्ण दान, घृत दान, धान्य दान, गुड़ दान, रजत दान, लवण दान।