क्या आपने किया है महामृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण, पढ़ें नई जानकारी

श्रावण मास में महामृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण कराना श्रेयस्कर होता है। महामृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण सुख-समृद्धि, पद-प्रतिष्ठा, धन व आरोग्य प्रदान करने वाला होता है।
 
पुरश्चरण कैसे किया जाता है-
 
हमारे सनातन धर्म में 'पुरश्चरण' बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। मंत्र जप की सामान्य विधि तो बहुत ही सरल है किन्तु उसी मंत्र का पुरश्चरण एक कठिन कार्य है। किसी मंत्र द्वारा अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिए उसका पुरश्चरण करने का विधान है। पुरश्चरण क्रिया युक्त मंत्र शीघ्र फलदायक होता है। पुरश्चरण करने के उपरान्त कोई भी कार्य या सिद्धी सरलता से प्राप्त की जा सकती है। आइए जानते हैं कि पुरश्चरण कैसे किया जाता है। 

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'पुरश्चरण' के पांच अंग होते हैं-
 
1. जप 2. हवन 3. तर्पण 4. मार्जन 5. ब्राह्मण भोज
 
किसी भी मंत्र का पुरश्चरण उस मंत्र की वर्ण संख्या को लक्षगुणित कर जपने पर पूर्ण माना जाता है। पुरश्चरण में जप संख्या निर्धारित मंत्र के अक्षरों की संख्या पर निर्भर करती है। इसमें ॐ और नम: को नहीं गिना जाता। जप संख्या निश्चित होने के उपरान्त जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज कराने से पुरश्चरण पूर्ण होता है।
 
- हवन के लिए मंत्र के अंत में ‘स्वाहा’ बोलें।   
- तर्पण करते समय मंत्र के अंत  में ‘तर्पयामी’बोलें। 
- मार्जन करते समय मंत्र के अंत  में ‘मार्जयामि’ अथवा ‘अभिसिन्चयामी’ बोलें।

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-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
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