कस्त्वं?शूली, मृगय भिषजं, नीलकंठ: प्रियेऽहं केकोमेकां वद, पशुपतिर्नेव दृष्ये विषाणे।
शिव जी ने कहा - मैं शूली (त्रिशूल धारी) हूं।
पार्वती जी ने कहा - शूली (शूल रोग से पीड़ित) हो तो वैद्य को खोजो।
शिव जी ने कहा - प्रिये! मैं नीलकंठ हूं।
पार्वती जी ने कहा (मयूर अर्थ में ) - तो एक बार केका ध्वनि करो।
शंकर जी ने कहा - मैं पशुपति हूं।
पार्वती जी ने कहा - पशुपति (बैल) हो? तुम्हारे सिंग तो दिखाई नहीं देते?
भोले ने कहा - मैं शिवा (पार्वती) का पति हूं।
शिवा बोलीं - शिवा ( भिन्न अर्थ में लोमड़ी) के पति हो तो जंगल में जाओ।