'वो कौन-से पाप थे?'
श्रीकृष्ण ने कहा, 'जब भरी सभा में द्रोपदी का चीरहरण हो रहा था तब ये दोनों भी वहां उपस्थित थे और बड़े होने के नाते ये दु:शासन को आज्ञा भी दे सकते थे किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया। उनके इस एक पाप से बाकी धर्मनिष्ठता छोटी पड़ गई।'
किंतु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में आहत हुआ भूमि पर पड़ा था तो उसने कर्ण से, जो उसके पास खड़ा था, पानी मांगा। कर्ण जहां खड़ा था, उसके पास पानी का एक गड्ढा था किंतु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया। इसलिए उसका जीवनभर दानवीरता से कमाया हुआ पुण्य नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया'।
जीव द्वारा किए गए कर्म चाहे सत्कर्म हो या दुष्कर्म, 100 जन्मों तक भी पीछा नहीं छोड़ते और उन्हें भुगतना ही पड़ता है। कर्म से पहले विचार पैदा होते हैं। ये हमारे मन की अति सूक्ष्म क्रियाएं हैं हठी मन को अपने वश में करने की।