तारकासुर को वरदान था कि शिव का पुत्र ही उसका वध कर सकता है, क्योंकि तारकासुर यह जानता था कि भगवान शिव की तपस्या तो लाखों युगों तक चलती रहेगी और जब तपस्या से जागेंगे तभी किसी से विवाह करेंगे और फिर तभी उनका पुत्र होगा। सती के भस्म हो जाने के बाद शिवजी तो समाधि में लीन हो गए थे। विष्णुजी ने जब देवताओं को तारकासुर के वध का रहस्य बताया तब विष्णुजी के कहने पर ही इंद्रदेव नारदजी के साथ मिलकर शिवजी की तपस्या भंग करने का प्रयास करते हैं परंतु वह ऐसा करने में असफल हो जाते हैं।