भगवान भोलेनाथ जी को रुद्राक्ष अत्यंत प्रिय है। रुद्राक्ष में भी एकमुखी रुद्राक्ष का अत्यधिक महत्व है। यह इतना प्रभावशाली होता है कि जिस व्यक्ति के पास एकमुखी रुद्राक्ष होता है उसे शिव के समान समस्त शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं।
रुद्राक्ष एक प्रकार का जंगली फल है, जो बेर के आकार का दिखाई देता है तथा हिमालय में उत्पन्न होता है। रुद्राक्ष नेपाल में बहुतायत में पाया जाता है।
कैसा होता है रुद्राक्ष :- कालीमिर्च से लेकर बड़े बेर के आकार तक का होता है। इसका फल जामुन के समान नीला तथा बेर के स्वाद-सा होता है। यह अलग-अलग आकार के समान ही अलग-अलग रंगों में मिलता है।
इन रंगों के आधार पर ही धार्मिक ग्रंथों में इन्हें मनुष्य के चार वर्णों में विभाजित किया गया है। सफेद रंग का रुद्राक्ष ब्राह्मण वर्ग का, लाल रंग का क्षत्रिय, मिश्रित वर्ण का वैश्य तथा श्याम रंग का शूद्र कहलाता है।
इसकी प्रकृति और वर्गानुसार ही मनुष्यों को रुद्राक्ष धारण करना चाहिए अर्थात ब्राह्मण को सफेद रंग का, क्षत्रिय को लाल रंग का तथा वैश्य को मिश्रित रंग का एवं शूद्र को श्याम रंग का धारण करना श्रेष्ठ है।
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कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति : रुद्राक्ष की उत्पत्ति के विषय में पुराणों और ग्रंथों में कहा गया है कि त्रिपुर नामक दैत्य बहुत ही दुष्ट था। उसने समस्त देवलोक में आतंक मचा रखा था।
एक दिन समस्त देवताओं ने भगवान रुद्र अर्थात शंकर के पास जाकर त्रिपुर के आतंक से देवलोक की रक्षा करने की प्रार्थना की। तब भगवान शंकर ने देवताओं की रक्षा के लिए दिव्य और ज्वलंत महाघोर रूपी अघोर अस्त्र का चिंतन किया। इस चिंतन के समय भगवान रुद्र के नेत्रों से आंसुओं की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं जिससे रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई।
रुद्राक्ष का प्राप्ति स्थान : रुद्राक्ष को प्राप्त करने की क्रिया बहुत ही सरल है, परंतु इसे पाना बहुत ही कठिन है। जब रुद्राक्ष का फल सूख जाता है तो उसके ऊपर का छिल्का उतार लेते हैं। इसके अंदर से गुठली प्राप्त होती है। यही असल रूप में रुद्राक्ष है। इस गुठली के ऊपर 1 से 14 तक धारियां बनी रहती हैं, इन्हें ही मुख कहा जाता है।