श्री सत्यनारायण का पूजन स्वयं करें
- डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंका र (क्रियाओं की जानकारी सहित) श्री सत्यनारायण व्रत-पूजनकर्ता पूर्णिमा या संक्रांति के दिन स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके सत्यनारायण भगवान का पूजन करें। इसके पश्चात् सत्यनारायण व्रत कथा का वाचन अथवा श्रवण करें। अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पद्धति एक बार जरूर पढ़ लें। पवित्रकरण : बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें- ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥ पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं । आसन : निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें- ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम् ॥ ग्रंथि बंधन : यदि यजमान सपत्नीक बैठ रहे हों तो निम्न मंत्र के पाठ से ग्रंथि बंधन या गठजोड़ा करें- ॐ यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्य(गुं)शतानीकाय सुमनस्यमानाः । तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम् ॥ आचमन : इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें व तीन बार कहें- 1. ॐ केशवाय नमः स्वाहा, 2. ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, 3. माधवाय नमः स्वाहा । यह बोलकर हाथ धो लें- ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।
दीपक : दीपक प्रज्वलित करें एवं हाथ धोकर दीपक का पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें- भो दीप देवरुपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविन्घकृत । यावत्कर्मसमाप्तिः स्यात तावत्वं सुस्थिर भव ॥ (पूजन कर प्रणाम करें) स्वस्ति-वाचन : निम्न मंगल मंत्र बोलें- ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु । शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥ ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः ॥ नोट : पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। पंचामृत में तुलसी की पत्तियाँ मिलाएँ। पंजीरी का प्रसाद बनाएँ। श्री सत्यनारायण भगवान की तस्वीर(फोटो) को एक चौकी पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। चौकी को चारों तरफ से केले के पत्तों(खंबे) से सजाएँ। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर स्थापित करें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें। संकल्प : अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्रीसत्यनारायण भगवान आदि के पूजन का संकल्प करें- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयेपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलि- युगे कलि प्रथम चरणे जंबूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्ष आर्य्यावर्तेक देशांतर्गत (अमुक) क्षेत्रे/नगरे/ग्रामे (अमुक) संवत्सरे, (अमुक)ऋतौ (अमुक) मासानाममासे (अमुक) मासे (अमुक)तिथौ (अमुक)वासरे (अमुक)नक्षत्रे (अमुक)राशि सर्व गृहेषु यथा यथा राशि स्थितेषु सत्सु एवं गृहगुणगण विशेषण विशिष्ठायां शुभ पुण्यतिथौ (अमुक) गोत्रोत्पन्न(अमुक)नाम ( शर्मा/ वर्मा/ गुप्तो दासोऽहम् अहं) ममअस्मिन कायिक वाचिक मानसिक ज्ञातज्ञात सकल दोष परिहारार्थं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं आरोग्यैश्वर्य दीर्घायुः विपुल धन धान्य समृद्धर्थं पुत्र-पौत्रादि अभिवृद्धियर्थं व्यापारे उत्तरोत्तरलाभार्थं सुपुत्र पौत्रादि बान्धवस्य सहित श्रीसत्यनारायण,गणेश-अम्बिका आदि पूजनम् च करिष्ये/ करिष्यामि ।
श्रीगणेश-अंबिका पूजनः हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं अंबिका का ध्यान करें- श्री गणेश का ध्यान : गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारुभक्षणम् । उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ॥ श्री अंबिका का ध्यान : नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै प्रणताः स्मताम् ॥ श्रीगणेश अंबिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि । (श्री गणेश मूर्ति अथवा मूर्ति के रूप में सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ, नमस्कार करें। अब भगवान गणेश-अंबिका का आह्वान करें- ॐ गणानां त्वा गणपति (गुँ) हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति(गुँ) हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति(गुँ) हवामहे व्वसो मम । आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् । ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन । ससस्त्यश्चकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥ ॐ भूभुर्वः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च । (श्री गणेश व सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ।) प्रतिष्ठा हेतु निम्न मंत्र बोलकर गणेश व सुपारी पर पुनः अक्षत चढ़ाएँ- ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ(गुँ) समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयंतामो(गुँ) प्रतिष्ठ ॥ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्ये प्राणाः क्षरन्तु च । अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥ गणेश-अम्बिके! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम् । प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः । (आसन के लिए अक्षत समर्पित करें।) अब हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलकर जल अर्पित करें- ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् । एतानि पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनराचमनीयानि समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः । (जल चढ़ा दें।)
पंचामृत स्नान : पंचामृत (दूध, दही, शकर, घी, शहद के मिश्रण) स्नान कराएँ :- पंचामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु । शर्करया समायुक्तं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि । (पंचामृत से स्नान कराएँ।) शुद्धोदक स्नानं : शुद्ध जल से स्नान निम्न मंत्र बोलते हुए कराएँ- गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती । नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (शुद्ध जल से स्नान कराएँ।) अब आचमन हेतु जल दें- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। वस्त्र एवं उपवस्त्र : निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित करें :- शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् । देहालंकरणं वस्त्रमतः शांति प्रयच्छ मे ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, वस्त्रं समर्पयामि । (श्री गणेश-अम्बिका को वस्त्र समर्पित करें।) यस्या भावेन शास्त्रोक्तं कर्म किंचिन सिध्यति । उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि । (श्री गणेश-अम्बिका को उपवस्त्र समर्पित करें।) आचमन के लिए जल अर्पित करें :- वस्त्र उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॥
यज्ञोपवीत : यज्ञोपवीत अर्पित करें- नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् । उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि । यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (यज्ञोपवीत अर्पित करें एवं आचमन के लिए जल दें।) नाना परिमल द्रव्य : अबीर, गुलाल इत्यादि अर्पित करें :- अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम् । नाना परिमल द्रव्यं गृहाण परमेश्वरः ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि । (अबीर, गुलाल, पुष्प इत्यादि अर्पित करें।) धूप : धूप-बत्ती जलाएँ (हाथ धो लें) व निम्न मंत्र से धूप दिखाएँ :- वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गंध उत्तमः । आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ ऊँ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, धूपं आघ्रापयामि । (धूप दिखाएँ व पुनः हाथ धो लें।) दीप : एक दीपक जलाएँ। (हाथ धो लें) व निम्न मंत्र से दीप दिखाएँ :- साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजतं मया । दीपं गृहाण देवेश त्रेलोक्यतिमिरापहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्व. गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दीपं दर्शयामि । (दीप दिखाएँ व हाथ धो लें।) नैवेद्य : मालापुए व अन्य मिष्ठान्न यथाशक्ति अर्पित करें :- शर्कराखंडखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च । आहारं भक्ष्य भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ॥ इसके पश्चात जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :- ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा । ॐ समानाय स्वाहा । ॐ उदानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा । नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (नैवेद्य निवेदित करें व जल अर्पित करें।) तांबूल : इसके पश्चात इलायची, लौंग, सुपारी, तांबूल इत्यादि अर्पित करें :- पूगीफलं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम् । एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, मुखवासार्थम् एलालवंग ताम्बूलं समर्पयामि ॥ (इलायची, लौंग, ताम्बूल आदि अर्पित करें।) इसके पश्चात गणेश-अम्बिका की प्रार्थना करें- विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय । नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषताय गौरीसुताय नमो नमस्ते ॥ लम्बोदर नमस्तुभ्यं मोदकप्रिय। निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा । सर्वेश्वरी सर्वमाता शर्वाणी हरवल्लभा सर्वज्ञा । सिद्धिदा सिद्धा भव्या भाव्या भयापहा नमो नमस्ते ॥ ('अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम्' कहकर जल छोड़ दें।) नोट :- इसके पश्चात (1) कलश पूजन (2) पंचदेव पूजन (3) षोडशमातृका पूजन तथा (4) नवग्रह पूजन किया जाता है।
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