Guru Amardas Ji: सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी की पुण्यतिथि 01 सितंबर को मनाई जा रही है। तारीख के अनुसार उनका जन्म 05 अप्रैल 1479 को तथा तिथिनुसार वैशाख शुक्ल चतुर्दशी (14वीं तिथि) पर सन् 1479 ई. में अमृतसर के 'बासरके' गांव में हुआ था, जो वर्तमान में पंजाब के अमृतसर जिले में आता है।
आइए जानते हैं उनके बारे में 7अनसुनी बातें-
1. गुरु अमर दास जी के पिता का नाम तेजभान एवं माता का नाम लखमी जी था। वे दिनभर खेती और व्यापार के कार्यों में व्यस्त रहने के बावजूद हरि नाम का सिमरन करने में लगे रहते थे। लोग उन्हें भक्त अमर दास जी कहकर पुकारते थे। गुरु अमर दास जी एक महान समाज सुधारक और बड़े आध्यात्मिक चिंतक थे। उन्होंने 21 बार हरिद्वार की पैदल फेरी लगाई थी। समाज से भेदभाव खत्म करने के प्रयासों में सिखों के तीसरे गुरु अमर दास जी का बड़ा योगदान है।
2. एक बार उन्होंने अपनी पुत्रवधू से गुरु नानक देव जी द्वारा रचित एक 'शबद' सुना। उसे सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि पुत्रवधू से गुरु अंगद देव जी का पता पूछकर तुरंत उनके गुरु चरणों में आ बिराजे। उन्होंने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगद देव जी को गुरु बना लिया और लगातार 11 वर्षों तक एकनिष्ठ भाव से गुरु सेवा की।
3. सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव जी ने उनकी सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर एवं उन्हें सभी प्रकार से योग्य जानकर 'गुरु गद्दी' सौंप दी। इस प्रकार वे सिखों के तीसरे गुरु बन गए। मध्यकालीन भारतीय समाज 'सामंतवादी समाज' होने के कारण अनेक सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त था। उस समय जाति-प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या हत्या, सती प्रथा जैसी अनेक बुराइयां समाज में प्रचलित थीं। ये बुराइयां समाज के स्वस्थ विकास में अवरोध बनकर खड़ी थीं। ऐसे कठिन समय में गुरु अमर दास जी ने इन सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ बड़ा प्रभावशाली आंदोलन चलाया। उन्होंने समाज को विभिन्न प्रकार की सामाजिक कुरीतियों से मुक्त करने के लिए सही मार्ग भी दिखाया।
4. गुरु अमर दास जी ने जाति प्रथा एवं ऊंच-नीच को समाप्त करने के लिए लंगर प्रथा को और सशक्त किया। उस जमाने में भोजन करने के लिए जातियों के अनुसार पंगते लगा करती थीं, लेकिन गुरु अमर दास जी ने सभी के लिए एक ही पंगत में बैठकर लंगर छकना यानी भोजन करना अनिवार्य कर दिया।
5. कहा जाता हैं कि जब मुगल बादशाह अकबर गुरु-दर्शन के लिए गोइंदवाल साहिब आया, तो उसने भी 'संगत' के साथ एक ही 'पंगत' में बैठकर लंगर छका। इतना ही नहीं, छुआछूत की कुप्रथा को समाप्त करने के लिए उन्होंने गोइंदवाल साहिब में एक 'सांझी बावली' का निर्माण भी कराया। कोई भी मनुष्य बिना किसी भेदभाव के इसके जल का प्रयोग कर सकता था।
6. गुरु अमर दास जी ने सती प्रथा की समाप्ति का एक क्रांतिकारी कार्य भी किया था। उन्होंने सती प्रथा जैसी घिनौनी रस्म को स्त्री के अस्तित्व का विरोधी मानकर उसके विरुद्ध जबरदस्त प्रचार किया, ताकि महिलाएं सती प्रथा की इससे मुक्ति पा सकें। गुरु अमर दास जी सती प्रथा के विरोध में आवाज उठाने वाले पहले समाज सुधारक थे।
7. गुरु जी द्वारा रचित 'वार सूही' में सती प्रथा का जोरदार खंडन किया भी गया है। आध्यात्मिक चिंतक तथा सती प्रथा के प्रबल विरोधी रहे सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी अमृतसर (पंजाब) के गोइंदवाल साहिब में 01 सितंबर 1574 को दिव्य ज्योति में विलीन हो गए।
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