सिंहस्थ में शय्यादान आमतौर पर दो तरह से किए जाते हैं। मृत्यु के बाद श्राद्ध कर्म के दौरान किया जाने वाला शय्यादान केवल महापात्र लेते हैं। इसे प्रयाग के तीर्थ पुरोहित स्वीकार नहीं करते। कल्पवास की अवधि पूरी होने पर श्रद्धालु तीर्थ यात्री जो शय्यादान करते हैं, उसे तीर्थ पुरोहित स्वीकार करते हैं। यह दान श्रद्धालु इसलिए करते हैं कि परलोक में उन्हें सुख मिले। इस लोक में कल्याण और परलोक में सद्गति के लिए यह दान किया जाता है।
हाथी, घोड़ा, पालकी, गाय, मोटर-कार, जैसे वाहन तीर्थ पुरोहितों को माघ मेले या कुंभ योग के समय मिलते हैं। उन्हें जमीन और भवन भी दान में मिलता है। इन दानों का अपना इतिहास है।
दरअसल, सिंहस्थ के लिए देश-विदेश के श्रद्धालुओं में गहरी आस्था है। आस्था का यह प्रवाह सनातन काल से चल रहा है। इसकी गति मन्द भले ही पड़ जाए, लेकिन यह धारा कभी सूख नहीं सकती। इस 'दान धारा' के साथ करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्थाएं जुड़ी हुई हैं।