डॉ. राजशेखर व्यास
कालिकाजी का स्थान शहर से एक मील की दूरी पर है। गोपाल मंदिर से सीधे यहां जाया जाता है। इनको महाकाली और गढ़ की कालिका भी कहते हैं। गढ़ नामक स्थान पर होने के कारण यह नाम हो गया है। कहा जाता है कि 'महाकवि कालिदास' की यह आराध्य देवी हैं। प्रवेश-द्वार के आगे ही सिंह वाहन की प्रतिमा बनी हुई है। आसपास दो तरफ धर्मशालाएं हैं। इसके बीच में देवीजी का मंदिर है। यहां नवरात्रि में पूजन होता है।
इस समय मंदिर में भव्य मूर्ति विद्यमान है; परंतु कुछ वृद्धजनों का कहना है कि वास्तव में वहां मूर्ति नहीं है। केवल स्थल ही माननीय है। मूर्ति तो पीछे की है। पता नहीं चलता कि यह मंदिर कब बना है।
इसी मंदिर के निकट लगा हुआ स्थिर गणेश का प्राचीन मंदिर है। पौराणिक काल से जो विख्यात है। गणेश की मूर्ति विशाल है। इसी प्रकार गणेश मंदिर के सामने भी एक हनुमान मंदिर प्राचीन है, वहीं विष्णु की सुंदर चतुर्मुख प्रतिमा है। खेत के बीच में गोरे भैरव का स्थान भी प्राचीन है। गणेशजी के निकट ही से थोड़ी दूरी पर शिप्रा की पुनीत धारा बह रही है। इस घाट पर अनेक सती की मूर्तियां हैं। उज्जैन में जो सतियां हुई हैं; उनका स्मारक स्थापित है। नदी के उस पार उखरेश्वर नामक प्रसिद्ध श्मशान-स्थली है।