सेंटियागो। अर्जेंटीना ने फुटबॉल विश्व कप जीतने की लातिन अमेरिका की उम्मीदों को बरकरार रखा है, लेकिन लियोनल मैसी की इस टीम को लेकर फुटबॉल का दीवाना यह महाद्वीप पूरी तरह से बंट चुका है।
रियो डि जेनेरियो के माराकाना स्टेडियम में रविवार को जर्मनी और अर्जेंटीना के बीच खिताबी मुकाबला होगा। लातिन अमेरिका के कुछ प्रशंसक तो अपने महाद्वीप की टीम अर्जेंटीना के समर्थन में हैं लेकिन दूसरे लोगों का कहना है कि फाइनल में 'घमंडी अर्जेंटीना' की जीत को पचा पाना उनके लिए मुश्किल होगा।
उरुग्वे की राजधानी मोंटेवीडियो के एक दुकानदार 44 वर्षीय अलबर्टो स्काग्लिया ने कहा कि एक दक्षिण अमेरिकी टीम के फाइनल में पहुंचने से मैं खुश हूं, लेकिन काश! यह इस क्षेत्र की कोई दूसरी टीम होती। अगर अर्जेंटीना की टीम जीत गई तो एक तो उसे चैंपियन बनने का घमंड होगा। दूसरा टीम यह प्रचार करती फिरेगी कि उसने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी के घर में जीत दर्ज की है।
अर्जेंटीना में अधिकांश यूरोपीय मूल के लोग हैं और 1930 के दशक तक वह दुनिया के अमीर देशों में शामिल था। लातिन अमेरिका के मिश्रित जनसंख्या वाले देशों के प्रति अर्जेंटीना का रवैया घृणापूर्ण रहा है।
कोलंबिया की राजधानी बगोटा के 37 वर्षीय जुआन कार्लोस चावेज ने कहा कि अगर अर्जेंटीना जीत गया तो उसे झेलना मुश्किल हो जाएगा। उनके पास पोप और हॉलैंड की रानी है लेकिन उसके पास विश्व कप नहीं हो सकता।
पोप फ्रांसिस इस पद पर पहुंचने वाले पहले लातिन अमेरिकी हैं जबकि हॉलैंड की रानी मेक्जिमा का जन्म भी अर्जेंटीना में हुआ था।
ब्राजील के स्टेडियमों में भी इसकी प्रतिध्वनि सुनाई देती है, जब लोग नारे लगाते हैं- 'दक्षिण अमेरिका लेकिन अर्जेंटीना नहीं'।
हालांकि कुछ लोग अर्जेंटीना के रवैए के बावजूद लातिन अमेरिका का हिस्सा होने के कारण उसके साथ खड़े हैं। चिली की राजधानी सेंटियागो की 61 वर्षीय सेवानिवृत्त अकाउंटेंट एलिजाबेथ सोलार ने कहा कि 'वे अहंकारी हैं, वे घमंडी हैं, लेकिन आखिरकार वे लातिन अमेरिकी हैं।'
सेंटियागो की 62 वर्षीय गृहिणी रुबेन फर्नांडीज ने कहा कि मैं बिना शर्त अर्जेंटीना का समर्थन करती हूं। उसे इस जीत की जरूरत है। आर्थिक तौर पर देश काफी बुरी हालत में है। इस विश्व कप से उनका आत्मसम्मान बढ़ेगा। जर्मनी को जीत की जरूरत नहीं है। (वार्ता)