एक जादुई रात, जो रोनाल्डो के अहसासों का अलबम बन गई

रविवार रात पेरिस में यूरो कप फ़ायनल शुरू होने के पंद्रह मिनट के भीतर एक हैशटैग वर्ल्डवाइड ट्रेंड करने लगा : #रोनाल्डो'ज़_मॉथ। "रोनाल्डो की भौंहों पर एक भुनगा!" इसका क्या मतलब था?
 
वह एक ऐसी "आइकनिक" छवि थी, जो मिथकों और परीकथाओं को जन्म देती है, जिसकी खोज में सोशल मीडिया कस्तूरी मृग की तरह हरदम बावरा फिरता रहता है। खेल शुरू होने के चंद मिनटों बाद ही मिडफ़ील्ड में दमित्री पाये के एक बेपरवाह "टेकल" ने पुर्तगाल के कप्तान और सितारा स्ट्राइकर क्रिस्त‍ियानो रोनाल्डो के घुटने को ज़ख़्मी कर दिया।
रोनाल्डो दर्द से कराह उठे। कुछ मिनटों तक खेलने की कोशिश की, फिर हताश होकर घास पर बैठ गए। आंखों से आंसू बहने लगे। पेरिस की रात में रोशनियों से जगमग "द स्तादे दे फ्रांस" खेल मैदान में उमड़ आए सैकड़ों भुनगों में से एक भटकता हुआ रोनाल्डो की भौंहों पर आ बैठा। मीडिया के कैमरों ने उस तस्वीर को क्लि‍क किया और वह वर्ल्डवाइड ट्रेंड होने लगी।
 
यूरो कप फ़ायनल मुक़ाबले से क्रिस्त‍ियानो रोनाल्डो चंद ही मिनटों बाद बाहर हो चुका था : वही रोनाल्डो, जो 2004 में कुल-जमा अठारह साल का था और लिस्बन में हुए यूरो फ़ायनल में घरू दर्शकों के सामने ग्रीस से मिली हार के बाद रोता हुआ मैदान से बाहर निकला था। जो 2006 के विश्वकप में सितारा बना, लेकिन तीन विश्वकप और इतने ही यूरो कप खेलने के बावजूद अपनी टीम को खिताबी जीत नहीं दिला सका था, जबकि मैनचेस्टर यूनाइटेड और रीयल मैड्रिड के लिए वह खिताबों की झड़ी लगा चुका था।
 
वही रोनाल्डो, जिसके इर्द-गिर्द पेरिस में खेले जा रहे इस हाई-प्रोफ़ाइल जंगी मुक़ाबले की पूरी किंवदंती रची जा रही थी, एक छोर पर लियोनल मेस्सी और दूसरे छोर पर अंथुआन ग्रीज़मन से उसकी होड़ बताई जा रही थी, वही रोनाल्डो फ़ायनल शुरू होने के चंद मिनटों बाद ही मुक़ाबले से बाहर हो चुका था और केवल एक छवि दुनिया की याद में बनी रह गई थी : फफककर रोता हुआ फ़ुटबॉल का महानायक, जिसकी भौंहों पर अपमान और सांत्वना के रूपक को एक साथ रचता एक भुनगा।
 
अपने सेनापति के बिना पुर्तगाल की टीम 90 मिनटों तक किला भिड़ाती रही और फ्रांस की तेज़़तर्रार आक्रमण पंक्त‍ि का मुक़ाबला करती रही। इतिहास फ्रांस के साथ था। 1975 के बाद से वह कभी पुर्तगाल से हारा नहीं था। 1984 में पहला और 2000 में ठीक सोलह साल बाद दूसरा यूरो कप वह जीत चुका था और 2016 उसका तीसरा "सोलहवां साल" था। 1984 में यूरो के साथ ही 1998 में घरू दर्शकों के सामने विश्वकप भी वह जीत चुका था और उसकी "गोल्डन जनरेशन" इतने शानदार खेल का प्रदर्शन कर रही थी कि टीम के नंबर वन स्ट्राइकर करीम बेन्ज़ेमा की कमी किसी को भी खल नहीं रही थी। इतिहास और मिथक की भावना से भरी इस टीम का पुर्तगाल की बेनाम चेहरों से भरी टीम पूरे समय मुक़ाबला करती रही, जिसके बारे में कहा जा रहा था कि वह फ़ाइनल तक पहुंचने के लायक़ नहीं थी, कि वह एक "वन मैन वंडर" टीम थी।
 
समय पूरा हुआ और खेल एक्स्ट्रा टाइम में चला गया। घुटनों पर पट्टी बांधे क्रिस्त‍ियानो रोनाल्डो मैदान के हाशिये पर चला आया और टीम का हौंसला बढ़ाने लगा। किसी निष्णात मैनेजर की तरह दिशानिर्देश देने लगा, जबकि कोच फ़र्नांदो सांतोस उसे देखते रहे। पेरिस के किसी अपार्टमेंट में बैठे जिनेदिन जिदान उस समय क्या सोच रहे होंगे : एक तरफ़ उनकी राष्ट्रीय टीम थी, दूसरी तरफ़ उनके द्वारा संचालित टीम रीयल मैड्रिड का सितारा स्ट्राइकर, जो उनकी मैनेजरी को चुनौती देता-सा लग रहा था।
 
इच्छाश‍क्ति, जुझारूपन, दृढ़ता, नेतृत्वशीलता : रोनाल्डो के व्यक्तित्व के ये गुण रविवार को रात को निखरकर सामने आए, जब एक लंबे सीज़न और लंबे टूर्नामेंट के बाद किंचित पस्त नज़र आ रही फ्रांस की सेलिब्रेटेड आक्रमण पंक्त‍ि : ग्रीज़मन, पाये, जिरू, पोग्बा, सोसास्को : को छकाते हुए पुर्तगान के अनजान-से एडर ने एक्स्ट्रा टाइम में वह करारा गोल दाग़ा और ज़ख़्मी रोनाल्डो अपने कोच की बांहों में मारे ख़ुशी के झूल गए।
 
2011 के क्रिकेट विश्वकप में यह जुमला ख़ूब चला था : "दिस टाइम फ़ॉर तेंदुलकर।" रविवार रात जब दर्द से कराहते हुए रोनाल्डो ने अपनी बांह पर लगा पुर्तगाली बैज उतारकर नैनी को पहनाया और उसे अपना स्वप्न सौंपा तो उसकी छांह में खेलने वाली पुर्तगाल की टीम जैसे "दिस टाइम फ़ॉर रोनाल्डो" के अघोषित मनोरथ से भर उठी। अब तक दबे-छुपे रहने वाले नाम उभरकर सामने आने लगे : सांचेज़, क्यूरेज़्मो, पेपे, नैनी, एडर और उनका गोलची पैट्रिसियो, जिसने ग्रीज़मन के दो-दो हेडरों को रोका और सोसास्को के अनेक प्रहारों को बेअसर कर दिया।
 
जीत की सीटियां बजते हुए रोनाल्डो के आंसू एक बार फिर फूट पड़े। घुटनों पर पट्ट‍ियां बांधे रोनाल्डो ने यूरो कप की ट्रॉफ़ी को उठाया, तब महज़ डेढ़ घंटा पहले की अपनी उस करुणार्त छवि से वह बहुत दूर चला आया था, मन ही मन जानता हुआ कि इतिहास अब उसके चिर प्रतिद्वंद्वी लियोनल मेस्सी की तुलना में उसके प्रति अधिक सदाशय रहने वाला है।
 
मेस्सी और रोनाल्डो : ये दो द्वैत हैं, दो परस्पर भिन्न चरित-नायक, जैसे हमारे यहां सचिन और कोहली। एक तरफ़ धैर्य, आत्मनिष्ठा, शालीन गौरव और कलात्मक आलस्य है, दूसरी तरफ़ अहंमन्यता, ढिठाई, किसी भी क़ीमत पर जीतने का जज़्बा, लड़ाकूपन। कला हमें निष्कवच बना देती है, जैसे उसने सचिन और मेस्सी को बना दिया है। लड़ाकूपन हममें "किलर इंस्ट‍िक्ट" भरता है, जैसे उसने कोहली और रोनाल्डो में भर दिया है।
 
पेशेवर खेल की दुनिया में जीत ही इकलौता तर्क है, जो दूसरी श्रेणी के खिलाड़ियों के हिस्से में अधिक आती है, जबकि इतिहास पहली श्रेणी के खिलाड़ियों को श्रेष्ठता के एक रोमांस के साथ अधि‍क याद रखता है। ऐसे खिलाड़ी अवाम में कोमल भावनाएं जगाने में भी हमेशा सक्षम रहते हैं, जबकि दूसरी श्रेणी के खिलाड़ी अपनी "लेगसी" के प्रति लगभग बेपरवाह रुख़ अख्त‍ियार किए रहते हैं।

वेबदुनिया पर पढ़ें