खन्ना को 3 सितंबर को इंदौर में हुई एआईटीए की आम सालाना बैठक में दूसरे कार्यकाल (2012 से 2016 तक) के लिए अध्यक्ष चुना गया था लेकिन उन्होंने खेल संहिता के अनुसार 2 कार्यकाल के बीच में अंतराल की अस्पष्टता का हवाला देते हुए इस पद पर काबिज होने से इंकार कर दिया था। वे हालांकि एआईटीए के आजीवन अध्यक्ष बन गए थे। एआईटीए और खेल मंत्रालय के बीच टकराव खन्ना के 2012 में अध्यक्ष बनने के बाद से ही चल रहा है। इससे पहले वे लगातार 2 कार्यकाल तक महासचिव रहे थे।
सरकार का कहना है कि खन्ना ने अध्यक्ष के तौर पर चुने जाने से पहले 4 साल के अनिवार्य अंतराल (कूलिंग ऑफ) का पालन नहीं किया लेकिन एआईटीए का कहना है कि उन्होंने महासचिव के तौर पर दोबारा चुना नहीं लड़ा और ऐसे कोई निर्देश नहीं हैं कि एक व्यक्ति जो महासचिव पद पर रह चुका हो, वे कूलिंग ऑफ समय के बिना अध्यक्ष नहीं बन सकता, हालांकि मंत्रालय अपने तर्क पर कायम है और इसके परिणामस्वरूप एआईटीए की हाल में मान्यता रद्द कर दी गई थी।
खन्ना आईटीएफ के उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि मैं एआईटीए कार्यकारी समिति को सिफारिश करूंगा कि मैं नहीं चाहता कि मैं अध्यक्ष बना रहूं। मैं इसे (एआईटीए को) नए अध्यक्ष के लिए चुनाव कराते हुए देखना चाहता हूं, वो भी एआईटीए के संविधान के अनुसार। (भाषा)