दृष्टिबाधित कपिल परमार ने बृहस्पतिवार को यहां जे1 60 किग्रा पुरुष पैरा जूडो स्पर्धा में भारत को जूडो में पहला पैरालंपिक पदक दिलाया जिससे देश के प्रेरणादायी पैरा खिलाड़ियों ने 25 पदक जीतने का अपना लक्ष्य हासिल किया और इसमें इजाफा करने की राह पर बने हुए हैं।
पदार्पण कर रहे परमार ने ब्राजील के एलिल्टोन डि ओलिवेरा के खिलाफ शुरू से ही दबदबा बनाकर रिकॉर्ड 10-0 की जीत से कांस्य पदक जीता। इससे परमार ने खुद के और देश के लिए ऐतिहासिक पोडियम स्थान हासिल किया।
भारत के पदकों की संख्या 25 तक पहुंच गयी है जिसमें पांच स्वर्ण, नौ रजत और 11 कांस्य पदक शामिल हैं। पदक तालिका में भारत 14वें स्थान पर उज्बेकिस्तान के पीछे है जिसके सात स्वर्ण से कुल 16 पदक हैं।
भारतीय पैरालंपिक समिति ने इन खेलों से पहले कम से कम 25 पदक जीतने की उम्मीद जताई थी और यह लक्ष्य पूरा हो चुका है। इससे यहां पैरा खिलाड़ियों का प्रदर्शन उम्मीदों से अधिक रहेगा। हालांकि दोहरी संख्या में स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद पूरी नहीं हो सकी। परमार के पदक की उम्मीद नहीं थी।
परमार (24 वर्ष) इससे पहले सेमीफाइनल ए में ईरान के एस बनिताबा खोर्रम अबादी से 0-10 से पराजित हो गये।
पैरा जूडो में जे1 वर्ग में वो खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं जो दृष्टिबाधित होते हैं या फिर उनकी कम दृष्टि होती है।
परमार ने 2022 एशियाई खेलों में इसी वर्ग में रजत पदक जीता था। उन्होंने क्वार्टरफाइनल में वेनेजुएला के मार्को डेनिस ब्लांको को 10-0 से शिकस्त दी थी। परमार को दोनों मुकाबलों में एक एक पीला कार्ड मिला।
Kapil Parmar wins BRONZE in Judo, men's 60kg J1 Bronze Medal match. He defeats Elielton de Oliviera with a score of 10-0
वहीं महिलाओं के 48 किग्रा जे2 वर्ग के क्वार्टरफाइनल में भारत की कोकिला को कजाखस्तान की अकमारल नौटबेक से 0-10 से हार का सामना करना पड़ा।
फिर रेपेशेज ए के जे2 फाइनल में कोकिला को यूक्रेन की यूलिया इवानित्स्का से 0-10 से हार मिली। इसमें उन्हें तीन जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी को दो पीले कार्ड मिले।
जूडो में पीले कार्ड मामूली उल्लघंन के लिए दिये जाते हैं।जे2 वर्ग में आंशिक दृष्टि वाले खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं।
परमार मध्य प्रदेश के शिवोर नाम के एक छोटे से गांव से हैं। बचपन में परमार के साथ एक दुर्घटना हुई थी। जब वह अपने गांव के खेतों में खेल रहे थे और गलती से पानी के पंप को छू लिया जिससे उन्हें बिजली का जोरदार झटका लगा। बेहोश परमार को अस्पताल ले जाया गया और वह छह महीने तक कोमा में रहे।
वह चार भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे हैं। परमार के पिता टैक्सी चालक हैं जबकि उनकी बहन एक प्राथमिक विद्यालय चलाती है।
इस असफलता के बावजूद परमार ने जूडो के प्रति अपने जुनून को कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने मेंटोर और कोच भगवान दास और मनोज की बदौलत जूडो में अपने जुनून को आगे बढ़ाना जारी रखा।परमार जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने भाई ललित के साथ मिलकर एक चाय की दुकान चलाते। ललित उनकी प्रेरणा का स्रोत हैं और आज भी उनकी वित्तीय सहायता का मुख्य स्रोत हैं। (भाषा)