पहली बार हॉकी थामी तो मकसद बेरोजगार पिता और सिलाई करके घर चलाने वाली मां की मदद करना था लेकिन दो ओलंपिक पदक जीतने वाले ललित उपाध्याय को खुशी है कि देश के लिये कुछ करने का जरिया यह खूबसूरत खेल बना।तोक्यो तथा पेरिस ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता भारतीय टीम के सदस्य रहे अनुभवी मिडफील्डर ललित ने एफआईएच प्रो लीग के यूरोप चरण के बाद अंतरराष्ट्रीय हॉकी से विदा ले ली।
ललित ने खेल से संन्यास के बाद (भाषा) को दिये इंटरव्यू में कहा , करीब 32 साल की उम्र हो गई है और मुझे लगा कि अब समय आ गया है कि विदा ले लेनी चाहिये। मैं यही चाहता था कि शिखर पर रहकर ही विदा लूं और लिगामेंट चोट के बावजूद मेरी फिटनेस और फॉर्म अच्छा रहा है।
यह पूछने पर कि क्या उन पर संन्यास का दबाव था, उन्होंने कहा , यह फैसला मैने खुद लिया है। मैं खुद को खींचना नहीं चाहता था। मुझे हरमनप्रीत समेत कई लोगों ने रोका लेकिन मैने मन बना लिया था। मैं बनारसी फक्खड़ हूं और एक बार सोच लिया तो फिर सोच लिया।
भारत के लिये 183 मैचों में 67 गोल कर चुके ललित ने कहा , मैं खुश हूं कि हॉकी इंडिया ने काफी सम्मान और मौके दिये। टीम का अच्छा साथ रहा। लेकिन अब समय हो गया था। एफआईएच प्रो लीग के लिये यूरोप जाने से पहले ही मैं सोच रहा था कि अब छोड़ दूंगा ।लेकिन घरेलू हॉकी और लीग खेलता रहूंगा।
प्रो लीग के यूरोप चरण में भारत को एकमात्र जीत बेल्जियम के खिलाफ आखिरी मैच में मिले और जीतकर सीधे विश्व कप के लिये क्वालीफाई करने का सपना भी टूट गया।ओलंपिक पदक, एशियाई खेल 2022 में स्वर्ण पदक और 2022 राष्ट्रमंडल खेल रजत समेत कई उपलब्धियां अर्जित कर चुके ललित ने कहा कि जब उन्होंने शुरूआत की तब एकमात्र लक्ष्य अपनी मां की घर चलाने में मदद करना था।
उन्होंने कहा ,परिवार की स्थिति बहुत खराब थ। पापा की कपड़े की छोटी सी दुकान बंद हो गई थी और मां सिलाई करके घर चलाती थी। ऐसे में बेहतर भविष्य की तलाश में और नौकरी पाने के लिये हॉकी थामी थी। मैं और बड़ा भाई डेबोर्डिंग में रहते थे तो ढाई. तीन सौ रूपये मिलते थे जिससे मम्मी को सिलाई मशीन दिलाई थी।
उत्तर प्रदेश पुलिस में उप अधीक्षक ललित को कैरियर के पहले ही कदम पर झटका लगा जब एक स्टिंग आपरेशन में अनजाने ही उनका नाम आया। एक टीवी चैनल के रिपोर्टर ने तत्कालीन भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) सचिव के ज्योतिकुमारन के सामने एक खिलाड़ी को भारतीय टीम में जगह देने की एवज में प्रायोजन प्रस्ताव रखा और वह खिलाड़ी ललित था।
उस घटना को अपने कैरियर की सबसे कड़वी याद बताते हुए ललित ने कहा ,मैं 17 बरस का था और भारत के लिये खेलने का सपना लेकर आया था। उस घटना के बाद टीम से बाहर हुआ और चार साल तक लोगों के ताने और शक भरी नजरों का सामना किया जबकि मेरी गलती भी नहीं थी। मैं न जाने कितनी बार अकेले में रोया।
उन्होंने कहा ,घर भी नहीं जा सकता था कि लोग क्या कहेंगे।ऐसे में मां ने कहा कि सही हो तो हॉकी मत छोड़ना। अच्छा खेलकर नौकरी हासिल कर लो और तभी मैचे सोचा कि अब भारत के लिये हर हालत में खेलना है।इसके बाद एयर इंडिया के लिये खेला और लोगों ने मेरी प्रतिभा को पहचानना शुरू किया।
इसके बाद 2011 में बनारस को विश्व हॉकी के मानचित्र पर पहचान दिलाने वाले भारत के महान खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद से मुलाकात हुई जिसे वह कभी नहीं भूल सकते।
उन्होंने कहा, 2011 में बनारस में एक नुमाइशी मैच में कई ओलंपियन जुटे थे। मेरे घर में आज भी वह तस्वीर है जो मैने शाहिद भाई, धनराज पिल्लै और दिलीप टिर्की जैसे दिग्गजों के साथ खिंचवाई थी। मुझे धनराज भाई ने शाहिद सर से मिलवाया लेकिन वह तस्वीर मुझे अधूरी लगती थी क्योंकि ये सभी दिग्गज ओलंपियन थे । अब लगता है कि वह तस्वीर पूरी हो गई।
कैरियर के सबसे सुनहरे पल के बारे में पूछने पर उन्होंने पेरिस ओलंपिक में ब्रिटेन के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मैच को याद किया जब अमित रोहिदास को शुरू में ही लालकार्ड मिलने के बाद दस खिलाड़ियों के साथ खेलते हुए भारत ने शूटआउट में जीत दर्ज की थी।
ललित ने कहा, उस मैच में एकता, प्रतिबद्धता, जुझारूपन, जुनून सब कुछ था और कोई भारतीय हॉकीप्रेमी उसे भूल नहीं सकता।
भारतीय हॉकी के लिये क्या सुझाव देना चाहेंगे, यह पूछने पर उन्होंने कहा कि हमेशा एक टीम के रूप में खेलें क्योंकि जीत टीम से मिलती है , सितारों से नहीं।
उन्होंने कहा , मेरा सुझाव यही है कि टीम सितारों से नहीं खेलती ,एक टीम से खेलती है। यूरोपीयों के पास हमसे ज्यादा कौशल नहीं है और न ही इतनी सुविधायें उन्हें सरकार या साइ या महासंघ से मिलती है। हम तभी जीतते हैं जब एक टीम के रूप में खेलते हैं और यह हमने कई बार साबित किया है।
उन्होंने कहा , टीम में माहौल सही रहेगा और टीम को ऊपर रखेंगे, तभी जीतेंगे। मेहनत, कौशल, फिटनेस तो कोच सिखा देंगे लेकिन यह सब भीतर से आता है और आना चाहिये।
प्रो लीग के यूरोप चरण में टीम भले ही एक ही मैच जीत सकी हो लेकिन उन्होंने कहा कि प्रदर्शन उतना भी बुरा नहीं था और शीर्ष टीमों के खिलाफ मुकाबले करीबी थे।उन्होंने कहा , इसमें कई नयी चीजें आजमाई गई जिनसे सीख ही मिली और आखिर में बेल्जियम जैसी शीर्ष टीम को हराया।
ललित ने पी आर श्रीजेश, तुषार खांडेकर और शिवेंद्र सिंह की तरह भविष्य में भारतीय हॉकी को कोच के रूप में सेवायें देने की भी इच्छा जताई।उन्होंने कहा , अगर हॉकी इंडिया चाहेगा तो मैं इसके लिये तैयार हूं । मैं भावी पीढी के हॉकी खिलाड़ियों की मदद करना चाहता हूं।
नीली जर्सी टांगने के बाद फिलहाल तो उनका इरादा बनारस में कुछ समय बिताने का है।उन्होंने कहा ,बनारस में 2024 में शादी के समय आठ दिन रूका था। इसके अलावा इतना लंबा समय नहीं रह पाया।वहां जाकर दशाश्वमेध घाट पर बैठूंगा और काशी विश्वनाथ के दर्शन करूंगा।