पाकिस्तान के पूर्व दिग्गज टेनिस खिलाड़ी हामिद उल हक के लिए भारतीय कोच और कप्तान जीशान अली से इस्लामाबाद में मुलाकात करना अपने बिछड़े हुए भाई से फिर से मिलने जैसा था।लगभग 36 साल पहले बेंगलुरु का दौरा करने वाले पाकिस्तान के डेविस कप टीम के पूर्व कप्तान को अच्छी तरह से याद है कि जीशान के पिता, दिवंगत अख्तर अली ने कैसे पाकिस्तान के खिलाड़ियों की देखभाल की थी।
उन्हें वह वाक्या भी याद है जब वह बिना वीजा के त्रिवेंद्रम चले गये थे लेकिन एक डीआईजी (पुलिस उपमहानिरीक्षक) ने उन्हें परेशान किये बिना वापस भेज दिया।अब 62 साल के हो चुके हामिद अभी भी भारतीय खिलाड़ी श्रीनिवासन वासुदेवन शुक्रगुजार है, जो उन्हें 1987 में बेंगलुरु में आवास खोजने के लिए संघर्ष करते समय अपने घर ले आये थे। वह एक सैटेलाइट टूर्नामेंट में प्रतिस्पर्धा करने के लिए इस शहर में गए थे।
हामिद ने कहा कि दिल्ली का खाना भी उतना ही मसालेदार होता था, जितना कराची में मिलता था।साल 2000 में प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस (पाकिस्तान में एक उपाधि) से सम्मानित हामिद इस बात से बेहद खुश हैं कि भारत की टेनिस टीम पाकिस्तान आई है।
उन्होंने PTI-(भाषा) को दिये साक्षात्कार में कहा, अब जब मैं यहां इस्लामाबाद में भारतीय दल से मिल रहा हूं, तो ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपने ही भाइयों से मिल रहा हूं, जो अलग हो गए थे। कोच जीशान अली मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। उनके पिता अख्तर अली भी हमारी बहुत मदद करते थे। वह हमारे लिये पिता और कोच की तरह थे, वह पाकिस्तानियों की बहुत मदद कर रहे थे।
उन्होंने कहा, दुबई में एशिया कप के दौरान मैं सेमीफाइनल में जीशान से हार गया था। लाहौर में भी मैं उसके खिलाफ खेला हूं। मुझे पता था कि वह आ रहे हैं, मैं उत्साह से उसका इंतजार कर रहा था। मैं उसे अपने घर ले जाना चाहता हूं और शहर देखने में उसकी मदद करना चाहता हूं, लेकिन आप जानते हैं, मौजूदा परिस्थितियों में यह संभव नहीं है। भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक तनाव के कारण दोनों देशों के आवेदकों को शहर-विशिष्ट वीजा मिलता है।
पाकिस्तान के लिए 1984 और 1997 के बीच डेविस कप खेलने वाले हमीद ने 1982 में एशियाई खेलों के लिए दिल्ली की यात्रा की थी और उन दिनों की यादें साझा कीं।
उन्होंने कहा, जब मैं भारत जाता हूं तो मुझे नहीं लगता कि मैं किसी विदेशी सरजमीं पर हूं। भारत और पाकिस्तान एक जैसे है। दोनों देशों की भाषा, भोजन, पोशाक, सब कुछ एक जैसा है। जैसा मसालेदार खाना हम कराची में खाते हैं, वैसा ही स्वाद हमें दिल्ली में भी मिलता है।
उन्होंने कहा, मैं 1987 में सैटेलाइट टूर्नामेंटों के लिए बॉम्बे (अब मुंबई), बैंगलोर (अब बेंगलुरु) और त्रिवेंद्रम गया था। मुझे आवास मिलने में परेशान हो रही थी और भारतीय खिलाड़ी वासुदेवन को जब इसके बारे में पता चला तो सुरक्षा चिताओं की परवाह किये बिना वह मुझे अपने घर लेकर गये थे।
हामिद के पिता सिराज उल हक अविभाजित भारत के बेहतरीन टेनिस खिलाड़ियों में से एक थे। उन्होंने हॉकी भी खेली।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान धन जुटाने के लिए एमेच्योर और पेशेवर खिलाड़ियों के बीच एक चैम्पियनशिप का आयोजन किया गया था। सिराज उस समय सर्वश्रेष्ठ पेशेवर खिलाड़ी थे जबकि गौस मोहम्मद सर्वश्रेष्ठ एमेच्योर खिलाड़ी थे।
हामिद ने बताया , इसके मुकाबले बॉम्बे, मद्रास (अब चेन्नई) और लाहौर में खेले गये थे। मेरे पिता उन दिनों की बातें करते थे। उन्होंने हॉकी में भी हाथ आजमाया है और आगा खान गोल्ड कप खेला है। वह 1942 में इस टूर्नामेंट को जीतने वाली पहली मुस्लिम टीम के सदस्य थे।
आगामी मुकाबले के बारे में पूछे जाने पर हामिद ने कहा कि भारतीय टेनिस हमेशा से पाकिस्तान टेनिस से आगे रहा है।
उन्होंने कहा, हमने भारतीय टेनिस से बहुत कुछ सीखा है। जब अनिल खन्ना शीर्ष पर थे, तो उन्होंने हमारा बहुत समर्थन किया। हमें घास वाले कोर्ट पर कुछ अच्छे परिणाम मिले हैं, लेकिन भारतीय टीम भी इस सतह पर बहुत अच्छी है।
उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि भारत के पास इस मुकाबले को जीतने की बेहतर संभावना है, लेकिन पाकिस्तान के पास अकील खान और ऐसाम उल हक कुरैशी के रूप में दो बहुत अनुभवी खिलाड़ी हैं। ये दोनों अगर एकल खेलते हैं, तो मुकाबला कड़ा होगा।