मीराबाई उन खिलाड़ियों में से है जिन्हें मुकद्दर ने मौका दिया और हुनर का सही पारखी भी उन्हें मिला। मणिपुर की राजधानी इम्फाल से 20 किमी दूर नोंगपोक काकचिंग गांव के एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली मीराबाई ने शुरू में ही तय कर लिया था कि वह खिलाड़ी बनेगी। कोच की तलाश में वह 2008 में इम्फाल के खुमान लाम्पाक पहुंची और उसके बाद मुड़कर नहीं देखा।
उन्होंने कहा कि मेरे सारे भाई और कजिन फुटबॉल खेलते हैं लेकिन दिनभर खेलने के बाद मैले-कुचैले होकर घर आते थे। मैं ऐसे खेल को चुनना चाहती थी जिसमें कि मैं साफ-सुथरी रहूं। पहले मैं तीरंदाज बनना चाहती थी, जो साफ-सुथरे और स्टाइलिश रहते हैं।
राष्ट्रमंडल खेलों में रिकॉर्ड बनाने के बाद अब मीराबाई की नजरें एशियाई खेलों में 200 किलो वजन उठाने पर है। उन्होंने कहा कि एशियाई खेलों के सभी शीर्ष प्रतिद्वंद्वी ओलंपिक में होंगे। एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने पर मैं ओलंपिक में भी जीत सकती हूं लेकिन इसके लिए 196 किलो से ज्यादा वजन उठाना होगा। मेरा लक्ष्य 200 किलो है। (भाषा)