75 पदक जीतने वाली वेटलिफ्टर उपेक्षा की शिकार

सोमवार, 9 मई 2016 (18:19 IST)
जांलधर। मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसले से उड़ान होती है'। यह कहावत वेटलिफ्टर रमनदीप पर बिलकुल सटीक बैठती है। लेकिन अपनी शानदार कामयाबी और 75 पदक जीतने के बावूजद यह खिलाड़ी सरकारी उपेक्षा की शिकार है।
रमनदीप एक ऐसी महिला जिसने कभी हारना नहीं सीखा, जिसे गोल्ड मैडल से कम मैडल गवारा नहीं, खुद हैंडीकैप होते हुए सामान्य वर्ग में खेलकर यह साबित करना उसका शौक है कि शरीर की कमजोरी कोई मायने नहीं रखती, जब इंसान में हौसला कूट-कूटकर भरा हो। यहां तक कि पिछले 10 वर्षों में न तो उसे किसी को मदद मिली है और न ही उसका कोई कोच है। उसने इस ऊंचाई को सिर्फ अपने बलबूते पर हासिल किया है।
 
जालंधर के भोगपुर कस्बे में घोड़ाबाही गांव की एक महिला ने वेट लिफ्टिंग में अपने बलबूते पर पूरे देश में पंजाब का नाम रोशन किया है, पर बात जब देश से बाहर दुनिया में देश का नाम रोशन करने की आई तब किसी की नजर उस पर नहीं पड़ी। पिछले 10 वर्षों में 75 मैडल, जिनमें अधिकतर गोल्ड, जीतने वाली यह महिला आज अपने घर में लोगों के कपड़े सिलकर गुजारा कर रही है।
 
आज अगर इसके पास कुछ है तो सिर्फ घरवालों का साथ और हाथ में फाइल जिसमें उसका बायोडाटा है और उस पर लिखा है कि वह 75 मैडल जीत चुकी है। कोई उसे घर चलाने के लिए एक नौकरी ही दे दे। 
 
रमनदीप का पति मजदूरी करता है। उसका ससुर लोगों के खेतों में काम करता है और उसकी 8 महीने की बच्ची है। रमनदीप बचपन से ही पोलियो से पीड़ित है। रमनदीप का पीहर लुधियाना में है, जहां उसने अपनी बीए तक की पढ़ाई की। इस दौरान जब वह 11वीं में पढ़ती थी तो उसे वेट लिफ्टिंग का शौक हुआ। उसने इस खेल को अपना जीवन बना लिया।
 
अपंग होने के बावजूद रमनदीप वेट लिफ्टिंग में अब तक 75 मैडल जीत चुकी है जिनमें 82 किलोग्राम भार वर्ग में 8 नेशनल गोल्ड मैडल शामिल हैं। यही नहीं, उसे 5 बार स्ट्रांग वूमेन के अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। रमनदीप हैंडीकैप होते हुए भी सामान्य वर्ग में खेलती है। आज वह अपने ससुराल में रहती है, जहां उसके परिवार में पति और पिता मजदूरी का काम करते हैं। 
 
रमनदीप के अनुसार जब वह लुधियाना के सलेम टाबरी गवर्नमेंट स्कूल फॉर वूमेन में 11वीं में थी तब वह अपनी सहेलियों को वेट लिफ्टिंग करते देखती थी। उसके अनुसार हैंडीकैप होने की वजह से वह पहली मंजिल पर नहीं जा सकती थी। फिर एक दिन उसे उसकी सहेली उसे ऊपर ले गई, जहां उसने पहली बार वेट लिफ्टिंग की और इसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यहां तक कि शादी के बाद भी ससुराल वालों की मदद से अब तक टूर्नामेंट के लिए देश के अलग-अलग राज्यों में जाती है। 
 
यही नहीं, मार्च 2016 में रयात (हिमाचल प्रदेश) में हुए नेशनल टूर्नामेंट में भी उसने मैडल जीत एशिया के लिए क्वालीफाई किया, पर वहां जाने के लिए जमा होने वाले 1 लाख रुपए न होने के कारण उसे अपना नाम वापस लेना पड़ा। रमनदीप ने कहा कि वह अपने खेल के जरिए देश का नाम रोशन करना चाहती है, पर गरीबी और सरकारों की अनदेखी के आगे मजबूर है। 
 
इस ऊंचाई तक पहुंचकर भी कुछ न कर पाने के बाद भी वह चाहती है कि वह अपनी बेटी को इसी खेल में डालेगी और खुद उसकी कोच बनेगी। रमनदीप ने कहा कि आज एक तरफ जहां उसने अपने घर में ही एक स्टोर के कमरे को अपना जिम बना रखा है, जहां वह प्रैक्टिस करती है और घर चलाने के लिए लोगों के कपड़े सिलती है। उसे इस बात का गहरा अफसोस है कि अपनी उपलब्धियों को लेकर दर-दर भटकने के बाद अब तक किसी ने उसकी पुकार नहीं सुनी और सबने उसे नजरअंदाज किया है। 
 
रमनदीप के ससुर बलबीर सिंह का कहना है कि उनकी बहू एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी है और उन्होंने कभी उसे खेलने से नहीं रोका। अगर उसकी सहायता की जाए तो वह और उपलब्धियां हासिल कर सकती है। इस मामले में जब इलाके के बीडीपीओ से बात हुई तो उन्होंने कहा कि उन्हें खुद रमन के बारे में मीडिया से पता चला है और अब वह खुद रमनदीप की फाइल आला अधिकारियों तक पहुंचाएंगे तथा जो मदद हो सकेगी, करेंगे।
 
रमनदीप की यह कहानी देश के खिलाड़ियों की पहली कहानी नहीं है। इस तरह के सैकड़ों खिलाड़ी हैं, जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों में देश का नाम रोशन करने के बाद सरकारों की अनदेखी के कारण गुमनामी के अंधेरे में रह रहे हैं। पर रमनदीप आज भी देश का एक चमकता हुआ हीरा है। अगर कोई जौहरी इसे सही तरीके से तराशे तो इसकी चमक देश ही नहीं, विदेश तक दिखाई दे सकती है। (वार्ता)

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