'रियो ओलंपिक' में पाकिस्तान के सिर्फ 7 खिलाड़ी

रविवार, 17 जुलाई 2016 (18:32 IST)
लाहौर। आतंकवाद का गढ़ और भारत जैसी दुनिया की सबसे मजबूती से बढ़ रही अर्थव्यवस्था को धमकाने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान के पास खेल और खिलाड़ियों के नाम पर कुछ नहीं है और यही कारण है कि 20 करोड़ की जनसंख्या वाले देश के मात्र 7 खिलाड़ी ही अगले महीने होने वाले रियो ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने उतरेंगे। 
धार्मिक कट्टरता, महिला एथलीटों के साथ भेदभाव, खेलों के लिए आधारभूत ढांचे की भारी कमी और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की कमी के कारण पाकिस्तान में खेलों का स्तर बेहद निचले स्तर पर चला गया है और ओलंपिक खेलों के लिए बमुश्किल 7 खिलाड़ी ही देश का नेतृत्व करने उतरेंगे। इन सभी खिलाड़ियों को रियो में उतरने के लिए वाइल्ड कार्ड मिला है, क्योंकि ये क्वालीफाई नहीं कर पाए थे।
 
पाकिस्तान के ओलंपिक इतिहास में शर्मनाक समय उस समय आया जब उसकी हॉकी टीम रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई ही नहीं कर सकी। यह पहली बार है, जब पाकिस्तानी हॉकी टीम ओलंपिक में नहीं खेलेगी। पाकिस्तान ने आखिरी बार ओलंपिक में पदक वर्ष 1992 के बार्सिलोना में जीता था, जब उसकी हॉकी टीम ने कांस्य पदक अपने नाम किया था। 
 
ओलंपिक इतिहास में पाकिस्तान के नाम कुल 10 पदक हैं जिनमें तीन स्वर्ण, तीन रजत और दो कांस्य सहित 8 पदक तो सिर्फ हॉकी में हैं। पाकिस्तान ने कुश्ती और मुक्केबाजी में एक एक कांस्य जीता है। 
 
पाकिस्तान ने पिछले लंदन ओलंपिक में 19 पुरुष और 2 महिलाओं सहित 21 खिलाड़ियों का दल चार खेलों में उतारा था। इसमें 16 सदस्य तो पुरुष हॉकी टीम के ही थे। इस बार हॉकी टीम के न होने के कारण पाकिस्तान के दल की संख्या 7 ही रह गई है।
 
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहलवान इनाम बट ने मौजूदा स्थिति पर निराशा जताते हुए कहा कि हम दुनिया से बहुत पीछे रह गए हैं। हमारे पास न बजट है, न ट्रेनिंग है और न ही सुविधाएं हैं। ऐसे में हम कैसे दूसरे देशों से मुकाबला कर पाएंगे? देश के अन्य एथलीटों की तरह बट का कहना है कि यदि पाकिस्तान सरकार खेलों में पैसा नहीं डालेगी तो इस देश में खेलों का भविष्यकार अंधकारमय रहेगा।
 
पाकिस्तान ओलंपिक संघ के अध्यक्ष आरिफ हसन के अनुसार रियो में पाकिस्तान के 7 खिलाड़ी उतरने जा रहे हैं और इन सभी खिलाड़ियों को वाइल्ड कार्ड प्रवेश मिला है। दरअसल, पाकिस्तान के खिलाड़ी रियो के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाए और उन्हें वाइल्ड कार्ड के जरिए ओलंपिक टिकट दिया गया है लेकिन इनके पदक जीतने की कोई संभावना नहीं है।
 
हसन ने कहा कि ये सिर्फ नाममात्र के लिए भागीदारी की औपचारिकता पूरी करने जा रहे हैं ताकि कुछ अनुभव हासिल कर सकें। हम उम्मीद करते हैं कि अगले ओलंपिक में हम बेहतर कर पाएंगे।
 
पाकिस्तान स्पोर्ट्स बोर्ड के उपनिदेशक वकार अहमद का कहना है कि सभी फेडरेशन के पास शीर्ष कोच लेने और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने की हैसियत नहीं है। अहमद के अनुसार अधिकतर फेडरेशन अब भी पुरानी तकनीक पर निर्भर हैं और उन्हीं पर काम कर रही हैं।
 
अहमद ने कहा कि एथलीट हताश हैं, क्योंकि कोच पढ़े-लिखे नहीं हैं और वही सिखा रहे हैं, जो उन्हें 30 साल पहले सिखाया गया था। आधारभूत ढांचे और तकनीक के बिना आप जीत नहीं सकते। हमारे देश में खेलों की तो जैसे दुर्दशा हो गई है। 
 
पाकिस्तान हॉकी का पतन और भी चौंकाने वाला है। यह वह टीम थी जिसमें 1960 और 1994 के बीच ओलंपिक स्वर्ण और विश्व कप जीते थे। पाकिस्तान हॉकी टीम के कोच ताहिर जमान ने कहा कि सरकार के समर्थन के बिना युवा खिलाड़ियों के सामने कोई भविष्य नहीं है।
 
हॉकी की हालत यह है कि शीर्ष खिलाड़ियों को 500-600 रुपए प्रतिदिन मिलते हैं जबकि पाकिस्तानी क्रिकेटरों को महीने में साढ़े तीन लाख रुपए की रिटेनरशिप दी जाती है और ये साथ ही प्रायोजन से भी पैसा कमाते हैं। 
 
वर्ष 1992 के ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली टीम के सदस्य रहे जमान ने कहा कि खिलाड़ियों के सामने कोई आकर्षण और भविष्य नहीं है। सरकार खिलाड़ियों को कोई नौकरी नहीं देती है, ऐसे में कोई युवा कैसे खेल में उतरना चाहेगा?
 
हसन ने सामाजिक रोक को महिला खिलाड़ियों के रास्ते की बड़ी बाधा बताते हुए कहा कि इससे महिला खिलाड़ी सामने नहीं आ रही हैं और जो हैं उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नीलम रियाज 16 साल की उम्र में साइकलिंग करना चाहती थीं लेकिन उसके पिता ने उसे सड़क पर साइकल चलाने से रोक दिया है, क्योंकि रास्ते में पुरुष उसे घूरेंगे। इसके बाद उसने कराते अपनाया और फिर भारोत्तोलन में उतर गईं।
 
25 वर्षीय रियाज ने कहा कि पाकिस्तान में लड़कियों को खेलने से रोका जाता है और कोच भी उनके आड़े आते हैं। रियाज गत वर्ष राष्ट्रीय चैंपियन बनी थीं और विदेश में हिस्सा लेने वाली पाकिस्तान की पहली महिला भारोत्तोलक भी बनी थीं। (वार्ता) 

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