शैलजा के मुताबिक, कबड्डी फेडरेशन ने मुझे हटा दिया था। मैंने हार नहीं मानी और खुद को बेस्ट कोच साबित करने के लिए ईरान चली गई। शैलजा ने ईरानी टीम की दिनचर्या में योग, प्राणायाम को शामिल किया। शैलजा का कहना है कि शुरुआत में मुझे कुछ समस्या हुई, क्योंकि मैं शाकाहारी थी और भाषा भी समस्या थी। फिर मैंने थोड़ी फारसी सीखी और अब ये काम आसान हो गया है। महिलाओं के लिए पोशाक और व्यवहार को लेकर ईरान के नियम सख्त हैं। शैलजा ने बताया कि प्राणायाम ने सांस पर नियंत्रण की उनकी क्षमता को बढ़ाया।
शैलजा के मुताबिक, मैच या अभ्यास से पहले टीम मैट को माथे से लगाती है। उन्होंने यह आदत अपना ली है। इसमें कोई धार्मिक नजरिया नहीं है। वे ऐसा सम्मान देने के लिए करती हैं। मैं भी ग्राउंड में जाने से पहले उसे माथे से लगाती हूं। ये उसके प्रति सम्मान जताने के लिए होता, जिसने हमें जीवन में सबकुछ दिया। इन लड़कियों ने ये मुझसे ही सीखा और अब वे भी ऐसा ही करती हैं। शैलजा और ईरान की महिला कबड्डी टीम की मेहनत रंग लाई और जकार्ता के थिएटर गरुड़ा स्टेडियम में खेले गए फाइनल मुकाबले में ईरान के हाथों भारत को 24-27 को हार झेलनी पड़ी।