यह 1988 की घटना है और इसके बाद गीता ने अपने पिता से कोचिंग लेकर रिकॉर्ड बनाए। वह 7 अक्टूबर 2010 को ऑस्ट्रेलियाई पहलवान एमिली बेन्स्टेड को हराकर राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला भारतीय बनी। वह हरियाणा की रहने वाली है, जो महिला भ्रूणहत्या के लिए बदनाम है और इसलिए उनकी उपलब्धि अधिक विशिष्ट थी।
किताब में लिखा गया है कि वह 1988 की सर्द सुबह थी, जब महावीर अपनी बेटी के जन्म पर गर्व से लोगों के बीच अपनी खुशी बांट रहे थे। उस दिन जब उन्होंने उसे अपनी गोद में उठाया और घोषणा की कि एक दिन वह उनके परिवार का नाम रोशन करेगी।
यह किताब उस व्यक्ति महावीर पर है जिन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों से लड़कर अपनी बेटियों ओलंपियन गीता और बबीता कुमारी को वह भविष्य दिया जिसका उन्होंने सपना देखा था। इसमें लिखा है कि कोई भी महावीर के मन की स्थिति को समझ सकता है, क्योंकि वे 80 के दशक के आखिरी वर्षों में एक लड़की के पिता बने थे जबकि लड़कियों को बोझ माना जाता था। लेकिन विडंबना देखिए कि महावीर नहीं, बल्कि उनकी पत्नी दया कौर थी जिन्होंने उम्मीद की थी कि उनकी पहली संतान लड़का होगा।