त्रिपुरा की दीपा करमाकर ने यूं तो इतिहास रच दिया है, लेकिन यदि वे रियो ओलंपिक में पदक जीतने में सफल रहती हैं, वे यह उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय बन जाएंगी। 22 साल की दीपा ने क्वालीफाइंग ईवेंट में 52.698 अंक हासिल कर रियो ओलंपिक का टिकट हासिल किया था। 52 साल के बाद यह पहला मौका है, जब भारत के किसी एथलीट ने ओलंपिक की जिमनास्टिक प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है।
आसान नहीं थी राह : जिमनास्ट में दीपा की राह बहुत मुश्किल रही है। बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि किसी समय उन्हें इस खेल के लिए रिजेक्ट कर दिया गया था। उन्हें फ्लैट फुट होने के कारण रिजेक्ट किया गया था। दरअसल, असल में जिम्नास्टिक जैसे फुर्ती के खेल में फ्लैट फुट को अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि इसकी वजह से जंप में दिक्कत आती है। फ्लैट फुट उस व्यक्ति को कहा जाता है, जिसके पांव के तलवे पूरी तरह सपाट होते हैं। सेना और सुरक्षा बलों में भी फ्लैट फुट वालों को नहीं लिया जाता।
दीपा के कोच बिस्बेश्वर नंदी के मुताबिक दीपा जब मेरे पास आई थीं तो उनके पैर सपाट थे और जिम्नास्ट के लिए यह अच्छा नहीं होता है। ऐसे पैरों की वजह से एथलीट के लिए पैर जमाना और भागना या कूदना आसान नहीं होता है। दीपा की इस समस्या को ठीक करना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। दीपा के पैरों में उस तरह का घुमाव लाना आसान नहीं था, लेकिन बचपन से ही हमें उनके पैरों को लेकर काफी मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि यही उनकी सबसे बड़ी समस्या थी।
जिमनास्ट बनने का जुनून : त्रिपुरा की रहने वाली दीपा का जन्म 9 अगस्त 1993 को अगरतला में हुआ था। उनके पिता खुद भी साई के कोच थे, इसलिए उन्होंने बेटी को भी खिलाड़ी बनाने का ही सपना देखा। दीपा जब छह साल की थी तब ही उनके पिता उन्हें जिम्नास्टिक सिखाने के लिए एक कोच के पास ले गए। पिता चाहते थे कि बेटी जिम्नास्ट बने, लेकिन कोच ने दीपा के फ्लैट फुट देखकर उसे दूसरे खेलों में जाने की सलाह दी।
इससे दीपा को निराशा तो हुई, लेकिन पिता ने उन्हें इस दौर से निकाला और उन्हें जिमनास्ट बनाने की ठान ली। दीपा ने भी पिता की इच्छा पूरी करने के लिए छह साल की उम्र से ही कड़ी मेहनत शुरू कर दी। उनकी मेहनत रंग लाई और उनकी सफलताओं का सिलसिला शुरू हो गया। दीपा विभिन्न प्रतियोगिताओं में अब 77 पदक जीत चुकी हैं, जिनमें 67 स्वर्ण पदक हैं। उन्हें अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
गरीबी की जमीन से बुलंदियों के आसमान तक : दीपा की पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं थी। दीपा ने जब पहली बार जिमनास्टिक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया तब उनके पास जूते भी नहीं थे। कॉस्ट्यूम भी उन्होंने किसी से उधार मांगा था, जो उन पर पूरी तरह से फिट नहीं हो रहा था।
दीपा सबसे पहले चर्चा में तब आई जब उन्होंने ग्लासगो में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीता। भारत में जिम्नास्ट जैसे पिछड़े खेल में पदक जीतना बड़ी उपलब्धि थी। इसके बाद उन्होंने पिछले साल नवंबर में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी शानदार प्रदर्शन किया। हालांकि उन्हें कोई पदक तो नहीं मिला लेकिन फाइनल तक पहुंचकर उन्होंने सबका ध्यान अपनी ओर जरूर खींचा।
दीपा जिम्नास्ट के जिस इवेंट प्रोडुनोवा में शिरकत करती हैं उसे काफी मुश्किल माना जाता है। दीपा की उपब्धि इसलिए भी बड़ी हो जाती है कि 60 के दशक के बाद भारत का कोई भी खिलाड़ी ओलंपिक जिम्नास्टिक में शिरकत नहीं कर पाया है।