गांगुली के संन्यास के निर्णय पर आश्चर्य नहीं

भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे सफल कप्तान माने जाने वाले सौरव चंडीदास गांगुली ने 'दुर्गा अष्टमी' के दिन अचानक अखबारनवीसों को बुलाकर संन्यास लेने का फैसला कर दिया। वे भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चार टेस्ट मैचों की सिरीज के बाद अपनी टेस्ट कैप उतारने और हमेशा-हमेशलिबल्ला टाँगने जा रहे हैं।

PTI
गौरतलब है कि 1 अक्टूबर के दिन जिन पन्द्रह सदस्यों का पहले दो टेस्ट मैचों के लिए ऐलान किया था उसमें सौरव का नाम भी शामिल था, लेकिन आज सौरव का यह कहना कि वे चार टेस्टों की सिरीज के बाद संन्यास लेंगे, इसका मतलब सीधा-सीधा यह है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड के साथ दादा का मैच पहले ही 'फिक्स' हो गया था। यह बात और है कि उसी रात गांगुली ने किसी भी समझौते से इनकार कर दिया था।

बंगाल के इस टाइगर की चाहत तो दो साल और खेलने की थी लेकिन लगातार बढ़ता दबाव उनके खेल को इस कदर प्रभावित कर रहा है कि उन्होंने मंगलवार की शाम को अपने दिल की बात जुबाँ पर ला दी। प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंतिम पाँच मिनट में उन्होंने धीरे से क्रिकेट से अलविदा कहने की बात कही।

भारत का इतिहास उठाकर देख लीजिए। यहाँ पर क्रिकेट सितारे संन्यास नहीं लेते, बल्कि लगातार खराब प्रदर्शन के बाद टीम से भगाया जाता है। खिलाड़ी ऑस्ट्रेलियाईयों की तर्ज पर खुद क्यों नहीं फैसला लेते कि उन्हें टीम पर बोझ नहीं बने रहना है। जहाँ तक गांगुली का सवाल है तो क्रिकेट बिरादरी में कोई भी उनके संन्यास के फैसले पर अचरज नहीं कर रहा है।

जिस दिन टीम का ऐलान हुआ था, उसके तीन दिन पहले ही गांगुली की बोर्ड के साथ फिक्सिंग हो गई थी और यह फिक्सिंग इसी शर्त पर थी कि वे सिरीज के बाद सम्मान विदाई ले लेंगे। यहीं नहीं, तब यह भी कहा गया था कि न केवल गांगुली बल्कि अन्य सीनियर क्रिकेटर भी यह बता दें कि वे कब तक खेलेंगे ताकि बोर्ड उनके द्वारा बताए गए मैचों की संख्या के बाद उन्हें ससम्मान विदाई की तैयारी कर सके।

गांगुली ने तब किसी शर्त के होने से साफ इनकार किया था लेकिन आज अचानक ऐसी कौनसी बात हो गई कि उन्हें संन्यास का ऐलान करना पड़ा। बोर्ड अध्यक्ष एकादश और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए मैच में दादा 'फ्लॉप' रहे थे। हो सकता है कि खराब फॉर्म ने ही गांगुली को प्रेरित किया हो कि वे संन्यास की बात जितनी चल्दी हो, उसका खुलासा कर दें। यूँ भी दुर्गा पूजा खत्म होने को है, इस बहाने वे पूरे बंगाल की सहानुभूति बटोराना चाहते हैं।

बहरहाल, गांगुली ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 9 अक्टूबर (दशहरे) से शुरू होने जा रहे पहले टेस्ट मैच से लेकर शेष तीनों टेस्ट मैच में खुले मन से बल्लेबाजी करेंगे और ऐसे में वे शतकीय या विजयी पारी भी खेलते हैं तो इससे उनके संन्यास पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।

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गांगुली-चैपल विवाद को छोड़ दें तो सौरव गांगुली ने भारतीय टीम के लिए 'राजकुमार' की तरह अपनी पारी खेली। जगमोहन डालमिया की सरपरस्ती में खुलकर मनमानी की लेकिन जब भी दादा का जिक्र आएगा, उन्हें सबसे सफल कप्तान की नजर से ही देखा जाएगा।

आज गांगुली संन्यास लेकर अपनी बची हुई प्रतिष्ठा बचाने में कायबाब कहे जा सकते हैं लेकिन कल को यदि उनका बल्ला नहीं चलता और यही मीडिया उन्हें खलनायक साबित करने पर उतारू हो जाता, तब वैसी स्थिति में बल्ला टाँगने का निर्णय और अधिक कष्टदायक होता।