अपनी कलाई की लचक से गेंद को खंजर की धार देने वाले देश के सबसे कामयाब गेंदबाज अनिल कुंबले का शुमार उन क्रिकेटरों में होता है, जिन्होंने नाउम्मीदी को कभी भी खुद पर हावी होने नहीं दिया और हमेशा अंधेरे में चिराग बन कर रोशन हुए।
'जंबो' के नाम से मशहूर कुंबले ने 18 साल के अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में शायद ही कभी मैदान पर आपा खोया हो। टीम मुश्किल में हो तो उनके मजबूत जबड़े जरूर भिंच जाते हैं, मगर मैदान की हर गुत्थी को उन्होंने हमेशा हौसले और ठंडे दिमाग से सुलझाने की कोशिश की।
गजब की जीवट के मालिक रहे हैं कुंबले। पिछले शुक्रवार को अपने आखिरी टेस्ट के तीसरे दिन उनके बाएँ हाथ में चोट लग गई और पूरे 11 टाँके लगवाने पड़े, लेकिन अगले दिन कुंबले पट्टी बाँधे मुस्कराते हुए मैदान पर हाजिर थे और उन्होंने तीन विकेट भी लिए।
2002 में एंटीगुआ में जबडे़ में फ्रैक्चर की वजह से पट्टी लगी होने के बावजूद उन्होंने वेस्टइंडीज के बल्लेबाजों को जिस तरह घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, उसे भुलाना मुमकिन नहीं है। कुंबले ने आज ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरे टेस्ट के आखिरी दिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर वाकई सबको हैरान कर दिया है।
बेशक पिछले कुछ अरसे में श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका और अब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कुंबले की धार बुझती नजर आई, लेकिन लग रहा था कि कुंबले अपने जीवट के सहारे इस खराब दौर से बाहर निकल आएँगे और उन क्रिकेट पंडितों को करारा जवाब देंगे जो उनके संन्यास की मांग करने लगे थे।
अपने आदर्श भागवत चंद्रशेखर की तरह ही दाहिने हाथ के स्पिनर कुंबले भी गेंद को हवा में लहराने के बजाय उसे पिच से रफ्तार देने में माहिर माने जाते हैं। उन्होंने गुगली को अपना मुख्य हथियार बनाया और श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन और ऑस्ट्रेलिया के शेन वॉर्न के बाद दुनिया के सबसे कामयाब टेस्ट गेंदबाज बन गए।
किसी बल्लेबाज के लिए टूटती हुई पिच पर कुंबले का सामना करने से ज्यादा मुश्किल कुछ भी नहीं है। वह 132 टेस्टों के अपने करियर में 619 विकेट लेते हुए कई ऐतिहासिक जीतों के नायक बने। कुंबले ने 271 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में 337 विकेट लिए। कई मौकों पर उन्होंने उपयोगी बल्लेबाजी भी की और 2506 टेस्ट और 938 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय रन भी बनाए।
जंबो को भारतीय टेस्ट टीम की कप्तानी पिछले साल पाकिस्तान के खिलाफ सिरीज में राहुल द्रविड़ की जगह सौंपी गई थी। उनके नाम एक टेस्ट शतक भी दर्ज है, जो उन्होंने ओवल में इंग्लैंड के खिलाफ बनाया था। गेंदबाजी का लगभग हर भारतीय रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करा चुके कुंबले टीम के सबसे अनुशासित खिलाड़ियों में रहे।
कुंबले ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का फैसला उस ऐतिहासिक फीरोजशाह कोटला में किया, जहाँ उन्होंने 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट में एक पारी के सभी 10 विकेट लिए थे। इस मैदान पर कुंबले का प्रदर्शन खास तौर से शानदार रहा है और यहां उन्होंने सात टेस्ट खेलते हुए 58 विकेट लिए हैं।
सौरव गांगुली के बाद कुंबले की संन्यास की घोषणा के साथ ही भारतीय क्रिकेट टीम बदलाव के एक नए दौर में कदम रख रही है। गांगुली नागपुर में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मौजूदा सिरीज के आखिरी टेस्ट के बाद टीम से हटेंगे मगर कुंबले इस मैच में नहीं होंगे। (वार्ता)