स्वामीजी ने तो 25 वर्ष की उम्र में ही वेद, पुराण, बाइबल, कुरआन, धम्मपद, तनख, गुरुग्रंथ साहिब, दास केपीटल, पूंजीवाद, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, साहित्य, संगीत और दर्शन की तमाम तरह की विचारधाराओं को घोट दिया था, लेकिन हमारे आज के युवा तो 25 वर्ष की उम्र तक भी स्वयं के धर्म, देश और समाज के दर्शन और इतिहास को किसी भी तरह से समझ नहीं पाते....। वे तो सिर्फ धर्म के तथाकथित ठेकेदारों और राजनीतिज्ञों द्वारा हांके जाते हैं। फिर क्यों वे विवेकानंद को मानते हैं?