शिक्षक जो एक....

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शिक्षक जो एक
माली की तरह पौधे को सींचता ह
इस आशा में कि उसमें पुष्प खिलें औ
सुवासित कर दें संसार को अपनी महक स

कुम्हार की तरह मिट्टी को मूर्त रूप देने हेत
घड़े को बाहर से तो चोट देता है किंतु
सहारे के लिए एक हाथ भीतर भी रखता ह

दीप की भाँति अपने तल में तिमिर को पनाह देकर
बाती को सतत प्रज्वलित रखता ह
ताकि यह विश्व धवल रोशनी से सराबोर रह
और अंतत: उसकी कल्पनाएँ आकार लेती हैं

वह पुष्प प्रभु के मस्तक पर शोभायमान होता ह
वह घड़ा कई प्यासों को तृप्ति देता ह
वह दीप मंदिर की देहरी प्रकाशित करता है

धन्य है वह शिक्षक जो
अपनी तपस्या का आनंद लिए बिन
नवीन सृजन के लिए चल पड़ता ह
फिर एक दीप रोशन करने...
फिर गीली मिट्टी को मूर्त रूप देने...
फिर एक पुष्प सुवासित करने...
प्रस्तुति- शीतमेहत

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