गुरु और शिष्य के बीच एक अनोखा रिश्ता होता है। गुरु एक घने वृक्ष की तरह अपने शिष्य को हर तरह से छाया प्रदान करता है। चाहे वह एक पिता की भूमिका हो, एक गुरु की या फिर एक पथप्रदर्शक की।
गुरु और शिष्य के बीच इस अनूठे बंधन को मजबूत करने के लिए अगर किसी चीज़ की ज़रूरत होती है तो वह है गुरु के प्रति शिष्य का विश्वास, श्रद्धा और सम्मान।
शिक्षक दिवस एक ऐसा दिन है जब हम उन गुरुओं का धन्यवाद करें जो हमें शिक्षा प्रदान कर हमारे जीवन में उजाला भर हमें जीवन जीने के सही तरीके से अवगत कराते हैं।
अगर हम हमारी पौराणिक कथाओं का रुख करें तो हमें गुरु और शिष्यों के रिश्ते के कई ऐसे उदाहरण मिल जाएँगे जो आज के समय में मिलना मुश्किल हैं।
हमारे पुराणों में जितने भी महान लोगों का वर्णन है, उन सभी ने अपने गुरुओं के सान्निध्य में ही जीवनयापन के तथ्यों के बारे में जाना और उन्हें अपने जीवन में अपनाया।
गुरु और शिष्य के अनूठे रिश्ते की बात हो तो एकलव्य और द्रोणाचार्य का ज़िक्र होना स्वाभाविक है।एकलव्य ने अपने गुरु द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा के रूप में अपना अँगूठा देकर उनका मान रखा। उसने एक सच्चा शिष्य होने का कर्तव्य निभाया।
यही नहीं इस अनुपम रिश्ते का एक उदाहरण और दिया जा सकता है, जिसे आज भी लोग स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम से याद करते हैं।
विवेकानंद एक ऐसे शिष्य थे जिन्होने अपने गुरु से जीवन जीने का सही तरीका सीखा। उन्होने अपने गुरु के दिखाए पथ पर चलते हुए न जाने कितने लोगों के जीवन में प्रेम, नि:स्वार्थ सेवा और सत्यता का दीपक प्रज्वलित किया।
इसके विपरीत हमारे कलयुग के बहुत से शिष्य और गुरु इस पवित्र बंधन को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। आज आप चाहे कोई भी समाचार पत्र उठा लें, उसमें इस तरह की अप्रिय घटना का ज़िक्र ज़रूर ही होगा।
गुरु का स्थान तो माता-पिता से भी ऊँचा होता है, क्योंकि माता-पिता जीवन देते हैं और गुरु उस जीवन का सही अर्थ समझाकर, सत्य का मार्ग दिखाते हैं।अगर वही गुरु, शिष्यों के जीवन में अंधकार का कारण बन जाएँ तो कैसे कोई शिष्य एकलव्य और विवेकानंद बन पाएँगे।
साथ ही शिष्यों को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि गुरु का पद भगवान के समान होता है अत: वे पूर्ण आदर और सम्मान के अधिकारी हैं। इसलिए कबीर के इस दोहे को हमेशा याद रखें-