3 साल बाद हॉकी टीम ओलंपिक में गोल्ड से कम कुछ भी नहीं चाहेगी, कोच ने बनाई यह योजना
गुरुवार, 12 अगस्त 2021 (11:03 IST)
नई दिल्ली: 41 साल बाद भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक में पदक जीतने में सफल हुई। बेहतर होता कि यह गोल्ड मेडल होता लेकिन बेल्जियम की टीम के सामने भारतीय हॉकी टीम कमतर साबित हुई। अब इस कमी को पूरी करने के लिए कोच समेत खिलाड़ियों ने कमर कस ली है।
भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कोच ग्राहम रीड ने कहा कि टोक्यो 2020 में ऐतिहासिक ओलंपिक पदक के बाद अगर भारतीय टीम तीन साल के बाद 2024 में पेरिस में होने वाले खेलों में गोल्ड मेडल जीतना चाहती है तो उसे बेल्जियम और ऑस्ट्रेलिया द्वारा निर्धारित मानदंडों (बेंचमार्क) का अनुसरण करने का प्रयास करना चाहिए।
ऑस्ट्रेलिया की हॉकी टीम 1980 के दशक से लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है तो वहीं मौजूदा ओलंपिक और विश्व चैम्पियन बेल्जियम ने पिछले 10 वर्षों में शानदार खेल दिखाया है। टीम टोक्यो में स्वर्ण जीतने से पहले रियो ओलंपिक (2016) में उपविजेता (रजत पदक) रही थी। उसने इसके अलावा 2018 में विश्व कप और 2019 में यूरोपीय चैंपियनशिप का खिताब भी हासिल किया।
रीड ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ” वे (बेल्जियम और ऑस्ट्रेलिया) दो विश्व स्तरीय टीमें हैं जिन्हें हमने फाइनल (टोक्यो में) में देखा था। मुझे लगता है कि वे बेंचमार्क हैं और हमें यही लक्ष्य बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ” अगर आप बेल्जियम को देखेंगे तो वह उस आईने की तरह हैं जो हमें लक्ष्य दिखाता है।”
मनप्रीत सिंह की अगुवाई में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने टोक्यो खेलों में कांस्य पदक जीतकर ओलंपिक के 41 साल के पदक के सूखे को खत्म किया। भारत ने इससे पहले मास्को खेलों (1980) में अपना आठवां और आखिरी स्वर्ण पदक जीता था। रीड ने कहा कि कोविड-19 के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान खिलाड़ियों के एक साथ रहने से उनके बीच मजबूत रिश्ता मजबूत हुआ।
उन्होंने कहा, ” अगर आप 15 महीने पीछे जाते हैं, तो यह हम सभी के लिए बहुत कठिन था क्योंकि हमारे में से अधिकतर ने लंबे समय से अपने परिवार को नहीं देखा है। इसलिए टोक्यो जाना और आखिर में खेलने में सक्षम होना बहुत अच्छा था। खेलों से पहले हमें बहुत सीमित प्रतिस्पर्धी मैचों में खेलने का मौका मिला। शीर्ष स्तर पर सुधार करने के लिए प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता होती है और यह मुश्किल था।”
उन्होंने कहा, ” हमारे वहां (टोक्यो) पहुंचने के बाद टीम अच्छी तरह से घुल-मिल गयी थी। मैं खिलाड़ियों से कहता कि वे पिछले 15 महीनों के प्रभाव को कम करके नहीं आंके। उन्होंने एक टीम के रूप में मुश्किल परिस्थितियों का सामना किया था और इससे आपसी समझ को बेहतर बनाने में मदद मिली। यही आपने कांस्य पदक के मैच में भी में देखा होगा।”