जंग के बीच गाजा में बारिश से हालात हुए बदतर, स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित, बीमारियों की रिस्क बढ़ी
बुधवार, 15 नवंबर 2023 (12:19 IST)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंगलवार को ग़ाज़ा सिटी में अल-शिफ़ा अस्पताल की घेराबन्दी के बीच, चिकित्साकर्मियों के साहसिक प्रयासों के लिए उनका आभार प्रकट किया है। यूएन एजेंसी ने ग़ाज़ा उन लाखों विस्थापितों के प्रति गहरी चिन्ता व्यक्त की है, जिन्हें अब भारी बारिश के बाद आई बाढ़ और स्वास्थ्य संकट से भी जूझना पड़ रहा है।
स्वास्थ्य संगठन की प्रवक्ता मार्गरेट हैरिस ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि बारिश से ग़ाज़ा पट्टी में लोगों की पीड़ा और बढ़ेगी। यह परिस्थिति एक ऐसे समय में उपजी है जब सीवर पम्प में व्यवधान और जल की क़िल्लत के कारण जल-जनित बीमारियों और जीवाणु-सम्बन्धी संक्रमणों में उछाल दर्ज किया गया है।
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने आगाह किया है कि मध्य-अक्टूबर के बाद से अब तक, दस्त के साढ़े 33 हज़ार से अधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश पांच साल से कम उम्र के बच्चों में हैं। यह मासिक औसत का लगभग 16 गुना है।
फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) के अनुसार, दक्षिणी ग़ाज़ा में पांच लाख 80 हज़ार से अधिक विस्थापित लोग आश्रय की तलाश में हैं। हमास द्वारा 7 अक्टूबर को इसराइल पर हमलों के बाद, इसराइल की जवाबी कार्रवाई में बड़े पैमाने पर जान-माल की हानि हुई है। यूएन एजेंसी के आश्रय स्थलों पर उनकी क्षमता से नौ गुना अधिक लोगों ने शरण ली है और भीड़भाड़ होने की वजह से स्वास्थ्य जोखिम बढ़ गए हैं। डॉक्टर हैरिस ने तत्काल युद्धविराम लागू कए जाने की अपील की है।
इसराइली बंधकों के परिजन, जिनीवा में : इस बीच, 7 अक्टूबर के बाद से ग़ाज़ा में हमास द्वारा बंधक बनाकर रखे गए 238 लोगों के परिवारों ने अपने प्रियजन की रिहाई के लिए मंगलवार को जिनीवा में अपने प्रयास जारी रखे। संयुक्त राष्ट्र की साझेदार संगठन, अन्तरराष्ट्रीय रैडक्रॉस समिति (ICRC) की अध्यक्ष मिरयाना स्पॉलजारिक और बंधकों के परिवारजन के साथ एक बैठक की घोषणा की गई थी। ICRC ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि मिरयाना स्पॉलजारिक, इसराइली प्रशासन के प्रतिनिधियों और उन संगठनों से भी मुलाक़ात करेंगी, जो ग़ाज़ा में बंधकों की रिहाई के लिए सीधे तौर पर हमास के साथ या अन्य पक्षों के साथ कोशिशों में जुटे हैं।
स्वास्थ्यकर्मियों के अनवरत प्रयास : डॉक्टर हैरिस ने ग़ाज़ा सिटी में स्थित अल-शिफ़ा अस्पताल में गम्भीर स्थिति के बारे में जानकारी दी, जोकि अब इसराइली सुरक्षा बलों के अभियान का केन्द्र है। इसराइल की ओर से दावा किया गया है कि हमास गुट ने यहां एक कमांड सेंटर स्थापित किया हुआ है, मगर मेडिकल स्टाफ़ ने इस आरोप को नकार दिया है।
डॉक्टर हैरिस ने बताया कि 11 नवम्बर के बाद से अस्पताल में बिजली आपूर्ति नहीं है और ना ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन या पीने के लिए पानी है। इसके बावजूद, अस्पताल में चिकित्साकर्मी स्वास्थ्य सेवाओं को जारी रखने के लिए हरसम्भव प्रयासों में जुटे हैं।
उन्होंने कहा कि अस्पताल में अब भी 700 मरीज़ और 400 से अधिक चिकित्साकर्मी मौजूद हैं। इसके अलावा, तीन हज़ार से अधिक विस्थापितों ने वहां शरण ली हुई है। पिछले 48 घंटों में क़रीब 28 मरीज़ों की मौत होने की ख़बर है।
मंगलवार समाचार माध्यमों के अनुसार, इसराइली सेना ने अल-शिफ़ा अस्पताल को इनक्यूबेटर मुहैया कराने की पेशकश की है, जहां समय से पूर्व जन्मे 36 बच्चों को अब भी देखभाल की आवश्यकता है। पिछले तीन दिनों में, समय से पूर्व जन्मे छह बच्चों की मौत होने की रिपोर्टें हैं, जिसकी वजह बिजली आपूर्ति के अभाव में इनक्यूबेटर का काम ना कर पाना बताई गई है।
सुरक्षित स्थान पर ले जाना कठिन : डॉक्टर हैरिस से मरीज़ों को अस्पताल से निकाल करके सुरक्षित स्थान पर ले जाने की सम्भावना के बारे में जब सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि अल-शिफ़ा में भर्ती मरीज़ों को गहन चिकित्सा समर्थन की आवश्यकता है। उनके अनुसार, अगर हालात अनुकूल हों, तो भी उन्हें वहां से ले जाना बेहद मुश्किल होगा, और बमबारी, सशस्त्र झड़पों और ऐम्बुलेंस के लिए ईंधन के अभाव में यह और चुनौतीपूर्ण हो गया है।
इसके मद्देनज़र, डॉक्टर हैरिस ने ज़ोर देकर कहा कि फ़िलहाल सर्वोत्तम रास्ता यही है कि टकराव को रोका जाए और ज़िन्दगियां लेने के बजाय, उनकी रक्षा करने पर ज़ोर दिया जाए।
पिछले एक महीने के दौरान, ग़ाज़ा में स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों पर 135 हमले होने की पुष्टि हो चुकी है। यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, इतनी कम अवधि में दर्ज होने वाले मामलों की यह सबसे अधिक संख्या है।
यूएन एजेंसी प्रवक्ता के अनुसार, स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों पर हमलों का रुझान बढ़ रहा है, जैसाकि हाल के महीनों में सूडान और यूक्रेन में जारी हिंसक टकरावों के दौरान देखा गया।
उन्होंने ध्यान दिलाया कि पहले एक समझ थी कि अस्पताल, सुरक्षित स्थल हैं, जहां लोग ज़रूरत होने पर उपचार के लिए जा सकते हैं, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि इसे अब भुला दिया गया है।