आखिर चल क्या रहा है मुलायम के मन में

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले 'समाजवादी परिवार' (क्योंकि परिवार ही पार्टी है) में जिस तरह की कलह देखने को मिली, उससे अटकलें लगाई जा  रही थीं कि यह पार्टी एकसाथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ पाएगी, लेकिन हुआ इसके उलट। सपा राज्य में चुनाव लड़ रही है। बस, राजनीति की इस शतरंज  का 'बादशाह' बदल गया है। 
 
पार्टी में रूठने-मनाने का दौर भी चला। मुलायम नाराज हुए, फिर माने, फिर नाराज हुए और अन्तत: अनमने मन से पूरी तरह मान भी गए। अब चुनाव  प्रचार के मामले में भी मुलायम अड़े हुए हैं। सपा उम्मीदवारों की मनुहार के बावजूद भी मुलायम उनका प्रचार करने और सभाएं लेने को राजी नहीं हैं।  उन्होंने सिर्फ अपने छोटे भाई शिवपालसिंह यादव के समर्थन में एकमात्र सभा जसवंतनगर में की थी। इसके बाद लखनऊ की कैंट सीट से चुनाव लड़ रहीं  अपनी दूसरी बहू यानी प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा के लिए उन्होंने जरूर रैली की। 
 
हालांकि लोगों को यह बात आसानी से गले नहीं उतरती की राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी मुलायम ने पार्टी की अंतर्कलह और आपसी फूट को सामने आने  दिया। समाजवादी पार्टी पर एकछत्र राज करने वाले मुलायम इतनी आसानी से हथियार डाल देंगे, इस पर राजनीति का कोई भी जानकार भरोसा नहीं करेगा।  दरअसल, यह सब उनकी सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा था। चुनाव से पहले या बाद में पार्टी में जो .घट रहा था, उसे उनका मौन समर्थन प्राप्त था।  बस, दिखावे के लिए वे इसका विरोध जरूर कर रहे थे, ताकि कोई उनकी रणनीति पर सवाल नहीं उठा सके। असल में मुलायम चालें अपने ‍हिसाब से ही  चल रहे थे पर दिखाई कुछ और ही दे रहा था। 
 
...तो असली गणित यह है : फिर बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर मुलायम का असली गणित क्या है? क्यों मुलायम बेटे को छोड़कर भाई के साथ खड़े  दिख रहे हैं? दरअसल, मुलायम उम्र के जिस पड़ाव पर हैं, वहां राजनीतिक उत्तराधिकारी को स्थापित करना जरूरी हो जाता है। मुलायम का गणित यही है  कि किसी भी तरह बेटे अखिलेश यादव को समाजवादी राजनीति में पूरी तरह स्थापित कर दिया, ताकि उन्हें कोई चुनौती नहीं दे पाए। शिवपाल को साधने  के पीछे भी उनका यही स्वार्थ भी है। 
 
यही कारण है की मुलायम ने अपने सारे पत्ते नहीं खोले और वह सब कुछ पार्टी में घटने दिया, जो कि वे नहीं चाहते (हकीकत में वे यही चाहते थे) थे।  शिवपाल को भी उन्होंने इसीलिए साधा क्योंकि मुलायम के साथ पार्टी में उनका लंबा अनुभव है और राज्य के बाहुबली भी उनसे जुड़े हुए हैं। शिवपाल ने  बाहुबली नेता मुख़्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के साथ गठबंधन की पुरजोर कोशिश की थी, लेकिन अखिलेश के विरोध के चलते ऐसा नहीं हो  पाया। बताया जाता है कि रघुराज प्रतापसिंह उर्फ राजा भैया जैसे बाहुबली लोग भी शिवपाल के कारण ही सपा के निकट आए थे।
 
मुलायम इस पूरी कवायत के जरिए शिवपाल का कद पार्टी में कम करना चाहते थे ताकि किसी भी तरह शिवपाल बेटे अखिलेश की राह में रोड़ा न बन  पाएं। क्योंकि अखिलेश की उत्तरप्रदेश में ताजपोशी के बाद अक्सर कहा जाता था कि राज्य में कई मुख्‍यमंत्री हैं, तो लोगों का इशारा शिवपाल और आजम  खान जैसे नेताओं की तरफ ही होता था। अब यदि अखिलेश चुनाव में अपनी ताकत दिखाने में सफल होते हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं कि फिर उन्हें पार्टी  में कोई चुनौती नहीं दे पाएंगे। आखिरकार मुलायम भी तो बेटे का ही भला चाहते हैं। 
   

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