नज्म : सय्यद सुबहान अंजुम

बुधवार, 9 अप्रैल 2008 (12:14 IST)
गूँगे तारे

एक लम्हे के लिए
तेरा ख्याल
चाँद तारों से मिला देता है
और फिर
जे़हन से दुनिया भर का
एक लावा सा उबल पड़ता है
अपने अवबाश ख्यालात लिए
हस्बे मामूल
मैं भी फुटपाथ पे जी लेता हूँ
हाँ मगर
रात भर सोचता रहता हूँ यही
मुल्क और कौ़म-का रिश्‍ता क्या है
क्यों ज़मीं बाँझ हुई जाती है
क्या ये मुमकिन ही नहीं
कारख़ानों से परेशाँ मज़दूर
कोई सहरा
कोई सूखा दर्या
कोई प्यासा न रहे
कोई बस्ती कभी गै़रआबाद न हो
वरना
आकाश के गूँगे तारे
तेरे खेतों को मेरे शहरों को
एक-एक करके जला डालेंगे....

2. दर्वेश

छाँव में बैठकर
इक खु़दा के तसव्वुर में खोया था मैं
मगर
धूप खाए हुए
एक दर्वेश ने
मेरी आँखों से चश्मा हटाया
तो फिर
मुझको मेरा पता मिल गया।

3. सवाबों के ताहफे

मैंने
अपने बिछड़े हुए
हमसफर के लिए
लिफ़ाफों में लिपटे हुए
सवाबों के तोहफे़
डाकघर के हवाले किए
जहाँ से
जवाबों की उम्मीद कम है।

4. एहसास
अपने एहसास की
बूढ़ी किरणें
पहली फ़ुर्सत में जगा देती हैं
फिर किसी काम से
सूरज की तरह
मैं भी हर सम्त बिखर जाता हूँ।

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